दिव्य चिंतन: अब Helpline का घंटा - हिलेगा पर बजेगा नहीं...

हरीश मिश्र
- “भागते भूत की लंगोटी” कहावत सबने सुनी है, लेकिन शायद ही किसी ने देखा हो कि भूत की लंगोटी कौन उतारता है। यदि आज विक्रमादित्य से बेताल पूछता कि भागता भूत कौन है और किसने उसकी लंगोटी उतारी, तो जवाब होता—भागता भूत है अधिकारी-कर्मचारी और लंगोटी उतारने वाला है सीएम हेल्पलाइन शिकायतकर्ता।

लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती। असली प्रश्न यह है कि आज का विक्रमादित्य कौन है और बेताल कौन ?
विक्रमादित्य हैं—मोहन यादव, जो मिथकों और किस्सों से निकलकर राजनीति के अखाड़े तक पहुंचे और बेताल है, प्रदेश की शोषित पीड़ित प्रजा अर्थात दीनदयाल, जिसने कभी सीएम हेल्पलाइन को न्याय की  डोर समझा था, पर आज वह दीनदयाल पेड़ पर टंगा बेताल बन चुका है।

शिवराज सरकार की पहल पर बनी हेल्पलाइन को मोहन सरकार ने संशोधित कर दिया। संशोधन का उद्देश्य है “झूठी और बेबुनियाद शिकायतों” पर रोक, जरुरी भी है, आदेश भी आ गया कि अब  अधिकारियों-कर्मचारियों को ब्लैकमेल करने वालों की खैर नहीं।
सुनने में तो यह सुधारात्मक कदम है, पर गहराई से देखें तो यह कदम जनता की असली शिकायतों के गला घोंटने की आशंका भी पैदा करता है।

असल सवाल है, यदि शासन  में सुशासन होता, शिकायतों का त्वरित निराकरण होता, तो हेल्पलाइन और जनसुनवाई का घंटा बार-बार बजाने की नौबत ही क्यों आती ? हाल यह है कि सरकार ने एक ऐसा घंटा टांग दिया है, जिसमें घंटाभरण ही निकाल लिया गया है। घंटा हिलेगा, पर ध्वनि नहीं निकलेगी। न्याय का आभास होगा, पर न्याय मिलेगा नहीं।

हो सकता है कुछ शिकायतकर्ताओं ने भ्रष्ट अधिकारियों-कर्मचारियों की लंगोट उतार दी हों, लेकिन अधिकारी कर्मचारी भी लूटपाट करने वाले सिद्धहस्त तांत्रिक बन चुकें हैं। शोषित पीड़ित दीनदयाल की लंगोटी उतार कर, कोट-सूट पहनकर वे लोक कल्याणकारी योजनाओं का भक्षण करते हैं और बच भी जाते हैं।
यानी व्यवस्था में दोष सिर्फ शिकायतकर्ताओं का नहीं, बल्कि उन अधिकारी कर्मचारियों  का भी है जिन्हें बचाने की चेष्टा खुद सरकार कर रही है।

इसलिए ज़रूरत है, हेल्पलाइन की पूरी समीक्षा की,
कठोर नियम बने ताकि न तो कुछ भ्रष्ट, बेईमान, मक्कार अधिकारी-कर्मचारी बचें और न ही बेबुनियाद शिकायत करने वाले। ऐसा माना जाता है  कि ब्लैकमेल वही होता है जिसने “विधि विरुद्ध छप्पन भोग” छुपकर खाया हो—भूखा-नंगा तो कभी ब्लैकमेल नहीं होता।
यदि सरकार ने इस चेतावनी को अनसुना किया तो वह दिन दूर नहीं जब प्रदेश की दुःखी, शोषित, पीड़ित दीन दयाल सरकार की नीतियों से दुखी होकर सत्ता की जरीब किसी पटवारी के हाथों में सौंप उमंग से सिंगार कर दे।
लेखक ( स्वतंत्र पत्रकार )
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