गुरु का सम्मान शिक्षक दिवस पर अतिथि शिक्षक की आपबीती पीड़ा बडी मार्मिक

रामलखन लोधी जिला अध्यक्ष रायसेन
भरे बाजार में पूछा गया परिचय मेरा,
 मैंने कहा शिक्षक हूं...
 वो बोले सरकारी हो क्या...

 मैंने कहा..
   कागज कलम से मेरी दोस्ती अधूरी है क्या....
 सम्मान पाने के लिए शिक्षक को सरकारी होना जरूरी है क्या.....
(अतिथि शिक्षक क्या शिक्षक नहीं होता)

      आज माननीय यशस्वी शिक्षा मंत्री जी का उद्बोधन बहुत ही प्रेरणादाई, संतुलित,सारगर्भित और प्रशंसनीय रहा। विभाग के मुखिया का इतना अच्छा भाषण सुनने को मिला जिसमें उन्होंने शिक्षकों की सराहना की, सम्मान दिया, प्रशंसा की। 
 माननीय शिक्षा मंत्री महोदय जी स्कूल शिक्षा विभाग में अतिथि शिक्षक भी है जो कही ना कही गुरु का दर्जा रखते है और मध्यप्रदेश स्कूल शिक्षा विभाग की रीड की हड्डी है। लेकिन विभाग शायद उन्हें अभी भी मजदूर जैसा ही समझते है। गुरु वह होता जिससे हमें कुछ ना कुछ सीखने कों मिले परन्तु अतिथि शिक्षकों ने तो लगातार अपने जीवन का बहुमूल्य समय , जीवन का आधा पड़ाव, लगभग 17 वर्षों से निरंतर पूरी निष्ठा लगन व ईमानदारी से बच्चों के भविष्य संवारने में लगा दिया, लेकिन आज भी अतिथि शिक्षकों का भविष्य अंधकारमय है। 
        हमें आज शिक्षक दिवस के दिन बहुत बड़ी उम्मीद थी कि हमें आज माननीय मुख्यमंत्री महोदय जी, माननीय शिक्षा मंत्री महोदय जी अतिथि शिक्षकों कों कुछ ना कुछ नई सौगात देंगे जिससे की अतिथि शिक्षकों का भविष्य सुरक्षित होगा।
  लेकिन आज का दिन भी हमारे लिए निराशा पूर्ण रहा। मध्यप्रदेश के अतिथि शिक्षक ने ऐसा क्या कृत कर दिया, जिससे उन्हें उनका सम्मान गुरु का दर्जा नही दिया जा रहा क्या सनातन धर्म यही है जो शिक्षा देने वाले एक अतिथि शिक्षकों के साथ इतना भेदभाव रखा जाए। गुरु तो गुरु होता जिसका कोई मौल नही होता। हमें नही चाहिए लाखों का वेतन, बस हमें गुरु का सम्मान मिल जाए। जिससे हमें भी समाज परिवार क्षेत्र में सम्मान के साथ जीने का अधिकार मिले।

अतिथि शिक्षक 
*अ*- अतिथि शिक्षक पाता है सबसे कम पगार,
नही लगता उसमें महीने भर का बघार।
*ति*- तिरस्कार सहते सहते 17 साल हो गए,
घर के सदस्यों के हाल बेहाल हो गए।
*थि*- थिरकते है प्राचार्य के हर आदेश पर,
सच्चा शिक्षक वही है जो आये एक आदेश पर
*शि*- शिक्षित तो ऐसा जो नियमित से है ज्यादा,
पाता वेतन उसके एक चौथाई से आधा ।
*क्ष*- क्षण भर के लिए सोचता हूं क्यो जन्म लिया, महंगाई भी ऐसी की परिवार का दम निकल गया।
*क*- कभी नहीं सोचा बेचारा कैसे जीता होगा,
शायद हवा खाकर पानी पीकर सोता होगा।

प्रेषक 
*रामलखन लोधी* 
जिला अध्यक्ष रायसेन 
आजाद स्कूल अतिथि शिक्षक संघ मध्यप्रदेश