सुरेन्द्र शर्मा | 15 अगस्त 1947 का दिन भारत के लिए एक ऐतिहासिक दिन था सदियों की विदेशी सत्ता समाप्त होकर भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हुई पर यह स्वतंत्रता खुशी के साथ आंसू भी लेकर आई। अंग्रेज स्वतंत्रता तो दे गये पर अपनी कुटिल चालों से भारत का विभाजन भी कराकर चले गए।
13 अगस्त तक जो राष्ट्र अखंड था 14 अगस्त को उसके दो टुकड़े हो गए जिस राष्ट्र ने 1905 में अपने एक प्रदेश बंगाल के विभाजन का पुरजोर विरोध किया एवं अंततः 1911 में अंग्रेजों को बंगाल का विभाजन रद्द करना पड़ा कमजोर नेतृत्व के कारण उसी राष्ट्र ने ठीक छत्तीस वर्ष पश्चात देश का विभाजन स्वीकार कर लिया।
आजादी के जश्न में ना कोई जनता के आंसू देखने वाला था और ना ही कोई परिजनों के बिछड़ने पर सांत्वना देने वाला था । विभाजन की मांग को विलक्षण मूर्खता कहकर ठुकराने वाले या पकिस्तान मेरी लाश पर बनेगा कहकर जनता को विभाजन न होने देने का आश्वासन देने वाले आज मौन थे । आवाजें थीं
तो स्वतंत्रता प्राप्ति के सरकारी आयोजनों की या फिर विभाजन के दंश को झेल रही आम जनता की।
♦आखिर भारत का विभाजन हुआ क्यों ??
अपनी आंतरिक दुर्बलताके कारण भारत लंबे समय तक विदेशी आक्रमणों को झेलता रहा एवं विदेशी शासकों के अधीन रहा । सन 1857 में पहली बार संगठित रूप से विदेशी दासता का प्रतिकार करने एवं स्वधर्म तथा स्वराज की रक्षा हेतु संग्राम लड़ा गया जिसने भारत से ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन समाप्त कर दिया एवं भारत पर सीधे ब्रिटेन का शासन हो गया इस क्रांति के पश्चात एक तरफ भारत की जनता में स्वतंत्रता प्राप्ति की इच्छा प्रबल हो चुकी थी दूसरी तरफ ब्रिटिश सरकार इस राष्ट्र भक्ति के ज्वार को ठंडा करने का हर संभव प्रयास करने लगी थी ब्रिटिश सरकार द्वारा अपनी फूट डालो और राज करो की नीति को और तेज गति से लागू करना प्रारंभ कर दिया था देश की एकता को तोड़ने के लिए रेजीमेंटों को जाति के आधार पर बांटना जनाक्रोश को दबाने के लिए 1885 में अंग्रेज आईसीएस अधिकारी ए ओ ह्यूम जो 1857 में इटावा के कलेक्टर थे एवं क्रांतिकारियों के डर से महिला का वेश रखकर इटावा से भागे थे के द्वारा कांग्रेस की स्थापना ,1905 में धर्म के आधार पर बंगाल प्रांत का विभाजन अंग्रेजों की सोची समझी चालों का परिणाम था पर भारत में राष्ट्रवाद का बेग अपने चरम पर था राष्ट्र भक्त जनता ने अंग्रेजों की सभी चालों को विफल किया हुआ था भारत के अंदर बंकिमचद्र चटर्जी , लोकमान्य तिलक लाला लाजपत राय बिपिन चंद्र पाल जैसे नेता जनता अंदर राष्ट्रभक्ति की ज्वाला को प्रखर कर रहे थे कांग्रेस भी अब अंग्रेज भक्त संस्था से राष्ट्र भक्त संस्था का रूप लेकर जन आंदोलन का नेतृत्व कर रही थी। जनता के इस ज्वार को सह पाना अंग्रेजों को असहनीय हो रहा था वह अपने लिए एक ऐसे मोहरे की तलाश कर रहे थे जो उनके लिए भारत विरोधी कार्य कर सके इसी उद्देश्य से 1905 में मुस्लिम लीग की स्थापना भी अंग्रेजों की योजना से हुई। परंतु प्रारंभ में वह निष्प्रभावी रही 1920 तक लोकमान्यय तिलक कांग्रेस के सर्वोच्च नेता थे 1 अगस्त 1920 को तिलक की मृत्यु के पश्चात मोहनदास करमचंद गांधी कांग्रेस के सर्वोच्च नेता बन गए गांधी जी का स्पष्ट मत कि हिन्दू मुस्लिम एकता के बिना स्वराज की प्राप्ति संभव नहीं है अतः मुस्लिम समुदाय को साथ रखने के लिए जो कुछ भी करना पड़े वह करना चाहिए जब भारत के मुसलमानो ने तुर्की के खलीफा के समर्थन में खिलाफत आंदोलन प्रारंभ किया उस समय कांग्रेस के प्रमुख नेताओं अध्यक्ष विजय राघवचारी, श्रीमती एनी बेसेंट, रवींद्रनाथ ठाकुर ने 1920 के कोलकाता अधिवेशन में खिलाफत आंदोलन का विरोध किया परंतु गांधी जी की इच्छा के आगे उनकी एक न चली परिणाम स्वरूप भारत में अलगाववाद का एक नया विचार प्रारंभ हुआ।
खिलाफत आदोलन से हिंदू मुस्लिम एकता तो दूर उल्टे मुस्लिम कट्टर पंथियों एवं ब्रिटिश षडयंत्र कारियों को हिंदुस्तान को कमजोर करने का एक नया हथियार मिल गया।
बात यही समाप्त नहीं हुई सरदार भगत सिंह एवं उनके साथियों की फांसी को रुकवाने का प्रयास न करना नेताजी सुभाषचद्र बोस को कांग्रेस के अध्यक्ष पद से त्याग पत्र देने के लिये मजबूर करना एवं मोहम्मद अली जिन्ना जब तक राष्ट्रवादी थे तब तक उनकी उपेक्षा करना और जब वह अलगाववाद का राग अलापने लगे तो उनके सामने झुकने जैसी अनेक गलतियां थी जो तत्कालीन नेतृत्व ने की एवं जो अततः भारत के लिए घातक साबित हुईं ।
मोहम्मद अली जिन्ना जो भारत के विभाजन के सूत्रधार बने प्रारंभ में प्रखर राष्ट्रवादी थे वह लोकमान्य तिलक के अनुयाई थे जब तिलक पर राष्ट्रद्रोह का मुकदमा चला तब उन्होंने ही पैरवी की थी। 1906 में जब आगा खान ने पृथक निर्वाचन मंडल की मांग की तब जिन्ना ने यह कहते हुए विरोध किया कि इससे मुसलमानों में अलगाववाद की भावना बढ़ेगी। यहां तक की मुस्लिम लीग में शामिल होते समय जिन्ना ने स्पष्ट शब्दों मे कहा था की मेरी निष्ठा राष्ट्रीय हित के प्रति होगी जिन्ना ने खिलाफतआदोलन का भी यह कहकर विरोध किया था कि यह मामला हमारे देश से संबंधित नहीं है यह एक मजहबी मामला है और उसके कारण आगे चलकर मजहबी वैमनस्य बढ़ेगा पर राष्ट्रवादी जिन्ना को कांग्रेस ने अलग-थलग कर दिया एवं आगा खान, अली बंधुओं जैसे अलगाववादियों को महत्व देती रही एवं जब जिन्ना ने अलगाववाद का रास्ता अपना लिया तो कांग्रेस एवं उसके नेता जिन्ना को महत्व देने लगे।
तुष्टिकरण यही नहीं रुका उस समय कांग्रेस के अधिवेशनों की शुरुआत वन्देमातरम गायन से होती थी
1923 के कांग्रेस के काकीनाडा अधिवेशन में पंडित पलुस्कर ने जैसे ही वंदे मातरम का गायन प्रारम्भ किया कांग्रेस अध्यक्ष मोहम्मद अली ने इसे रोकने का प्रयास किया मंचासीन एक भी नेता ने मोहम्मद अली का विरोध नहीं किया और तमाशा देखते रहे परंतु पंडित पलुस्कर तेजस्वी थे उन्होंने विरोध की परवाह न करते हुये वंदे मातरम का गायन पूर्ण किया मोहम्मद अली मंच से उठकर चले गए उन्हें रोकने की हिम्मत किसी ने नहीं की।
यही नहीं 1937 में यह देखने के लिए एक समिति बना दी कि वंदे मातरम का कौन सा हिस्सा मुसलमानो के लिए आपत्तिजनक है आगे चलकर वंदे मातरम के केवल प्रथम दो ही पद गाए जाने लगे यह तुष्टिकरण की पराकाष्ठा थी।
कांग्रेस का अधिकृत ध्वज निर्धारित करने के लिए 1931 में ध्वज समिति बनी समिति में पंडित जवाहरलाल नेहरू, मौलाना आजाद, सरदार वल्लभभाई पटेल , मास्टर तारा सिंह, डीबी कालेलकर, पट्टाभि सीतारमैया , एन.एम हार्डिकर सदस्य थे समिति ने सर्वसम्मति से भगवा रंग और चरखा यह प्रतीक इस प्रकार के ध्वज का प्रस्ताव दिया था परंतु इस ध्वज को ना मानते हुए गांधी जी द्वारा उस पर समय धार्मिक आधार पर सुझाए गए तिरंगा (जिसमें ऊपर का केसरिया हिंदुओं का , नीचे का हरा मुसलमानों का बीच में सफेद अन्य धर्म का प्रतीक था ) को कांग्रेस का राष्ट्रीय ध्वज स्वीकार कर लिया गया।
हिंदी के स्थान पर हिंदी और उर्दू को मिलाकर हिंदुस्तानी भाषा के उपयोग पर जोर शिवाजी, महाराणा प्रताप , गुरु गोविंद सिंह जैसे महापुरुषों का महत्व कम किया गया एवं आगे चलकर 1934 में नागपुर में हुए हिंदी साहित्य सम्मेलन में कवि भूषण की रचना शिवा बावनी को सांप्रदायिक घोषित करते हुए उसके कुछ पदों को आधिकारिक और मान्यता प्राप्त प्रकाशनों से निकालने का प्रस्ताव पारित किया गया इस प्रकार देश के मान बिंदुओं से लगातार समझौते होते रहे।
इस प्रकार तुष्टिकरण सत्ता की लालसा एवं कमजोर नेतृत्व तथा अंग्रेजों की कुटिल चालों के कारण भारत का विभाजन हो गया जिस रावी के तट पर 26 जनवरी 1930 को पूर्ण स्वराज्य की शपथ कांग्रेस के नेताओं द्वारा ली गई थी वह रावी पाकिस्तान का हिस्सा हो गई ।
जिन आंखों में स्वतंत्रता प्राप्ति का स्वप्न बरसों से पल रहा था उन आंखों को स्वतंत्रता के साथ विभाजन का भीषण मंजर देखना पड़ा।।
जवाहरलाल नेहरू भारत का प्रधानमंत्री बनकर खुश थे (यहां यह भी महत्वपूर्ण है कि भारत के प्रधानमंत्री के लिए कांग्रेस की प्रांतीय परिषदों से प्रस्ताव मंगाए गए थे कुल 15 प्रस्ताव प्राप्त हुए थे 13 सरदार पटेल के थे 1 पट्टाभि सीतारमैया का और मात्र एक पंडित जवाहर लाल नेहरू का प्रस्ताव था लेकिन 13 प्रस्ताव वाले सरदार पटेल को उप प्रधान मंत्री बनाया गया और एक प्रस्ताव वाले नेहरू जी प्रधानमंत्री बने) तो मोहम्मद अली जिन्ना मनमांगा देश लेकर खुश थे ,दुखी थे तो भारत के करोड़ों लोग जिनका सब कुछ लुट गया स्वतंत्रता तो मिली पर देश खंडित हो गया।।
♦कितनी बार हुआ भारत का विभाजन ????
अग्नि,वायु एवं विष्णु पुराण में श्लोक है :-
उत्तरं यत् समुद्रस्य, हिमाद्रश्चैव दक्षिणम्।
वर्ष तद् भारतं नाम, भारती यत्र संतति।।
बृहस्पति आगम का कथन है :-
हिमालयं समारम्भ्य यावद् इन्दु सरोवरम।
तं देव निर्मित देशं, हिन्दुस्थानं प्रचक्षते।।
जो भारत वर्ष की विशालता को दर्शाते हैं।
सन् 1857 में भारत का क्षेत्रफल 83 लाख वर्ग कि.मी. था। वर्तमान भारत का क्षेत्रफल 33 लाख वर्ग कि.मी. है। जबकि पड़ोसी 9 देशों का क्षेत्रफल 50 लाख वर्ग कि.मी. बनता है।
3 जून 1947 के दिन अचानक अंग्रेजों द्वारा कहा गया कि भारत अब आजाद हो रहा है लेकिन हमारी जमीन बंटेगी और इसे कैसे बांटना है यह अंग्रेज बहादुर और मुसलमान तय करेंगे।
आजादी मिलना वैश्विक प्रक्रिया का एक हिस्सा भर थी जिसके दो ही कारक महत्वपूर्ण थे। एक द्वितीय विश्व युद्ध जिसने ब्रिटेन के बाजार को सड़क पर ला दिया और दूसरा यह डर कि आजाद हिंद फौज के प्रति भारतीय सेना की बढ़ती सहानुभूति कहीं बड़े आंदोलन का रूप न ले ले। इसकी परिणतिस्वरुप माउंटबैटन दम्पति भारत आए।
माउंटबेटन और रेडक्लिफ़ ने बँटवारे के मामले में बहुत जल्दबाज़ी दिखाई, पहले भारत की आज़ादी के लिए जून 1948 तय किया गया था, माउंटबेटन ने इसे पहले खिसका कर अगस्त 1947 कर दिया जिससे भारी अफ़रा-तफ़री फैली और असंख्य लोगों की जानें गईं।
रेडक्लिफ को करीब 8.8 करोड़ लोगों के लगभग साढ़े चार लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र का न्यायोचित ढंग से बंटवारा करना था। हर राज्य के आयोग में दो कांग्रेस और दो मुस्लिम लीग के प्रतिनिधि भी थे, हालांकि अंतिम निर्णय रेडक्लिफ को ही करना था।
इस विषय में सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि सर सिरिल जॉन रेडक्लिफ को हिन्दुस्तान के भूगोल की जानकारी बहुत कम थी। वे तो पहले कभी हिन्दुस्तान भी नहीं आये थे।
8 जुलाई 1947 को हिंदुस्तान पहुंचने के बाद उन्हें बताया गया कि उन्हें क्या करना है। यही नहीं, ब्रिटिश सरकार ने महत्वपूर्ण काम के लिए रेडक्लिफ को मात्र 5 सप्ताह ही दिये। यही नहीं, ब्रिटिश सरकार ने उन्हें क्षेत्रीय जानकारी एकत्रित करने का समय भी नहीं दिया था।
फौरी तौर पर दो कमीशन बना दिए गए। पंजाब सीमा आयोग जिसमें कांग्रेस से जस्टिस मेहर महाजन और तेजा सिंह जबकि मुस्लिम लीग से दीन मोहम्मद और मोहम्मद ओमेर शामिल थे। उधर बंगाल सीमा आयोग में जस्टिस बी के मुखर्जी , सी सी बिस्वास कांग्रेस से और जस्टिस एस रहमान और अबू सालेह मुस्लिम लीग की तरफ से शामिल थे। मजेदार कि इनमें से कोई भी जमीनी हकीकत से वाकिफ नहीं था। रेडक्लिफ दोनों कमिटी का चेयरमैन था।
बंटवारे की योजना को अमल में लाने का काम एक ऐसे आदमी के जिम्मे था जिसे भारत की भूराजनीतिक, सामाजिक और भौगोलिक स्थितियों का जरा भी अंदाजा नहीं था। इतना ही नहीं, रेडक्लिफ न तो कोई प्रशासक था न ही मानचित्रकार और न ही उसे तात्कालिक जनसांख्यिकी की ही कोई जानकारी थी।
♦ बंटवारा चाहता कौन था ??
समाजवादी नेता राममनोहर लोहिया ने अपनी किताब 'गिल्टी मेन ऑफ़ पार्टिशन' में लिखा है कि कई बड़े कांग्रेसी नेता जिनमें नेहरू भी शामिल थे वे सत्ता के भूखे थे जिनकी वजह से बँटवारा हुआ परंतु इस्लामिक साम्प्रदायिकता इस लालच से भी बहुत बड़ी थी।
नामी-गिरामी इतिहासकार बिपिन चंद्रा ने तो विभाजन के लिए सीधे मुसलमानों की सांप्रदायिकता को ज़िम्मेदार ठहराया है।
जिस समय भारत में प्रांतीय विधान सभाओं के चुनाव हो रहे थे उस समय 19 फरवरी 1945 को लार्ड पैथिक लारेंस ने पार्लियामेंट में ' पाकिस्तान को एक पृथक प्रभुतासंपन्न राज्य बनाए जाने की मांग को अव्यवहार्य कहा क्योंकि उनके अनुसार पाकिस्तान में बड़ी तादाद में गैर मुस्लिम लोग होंगे और मुसलमानों की एक बड़ी आबादी भारत में रह जाएगी।'
दरअसल हमारी संविधान सभा ने जिस लिखित संविधान को अपनाया वह लगभग 75% हिस्सा 1935 का भारत शासन एक्ट ही है जिसमें गैरजरूरी प्रशासनिक स्थानीय प्रावधान हैं और जो बेइंतहा अलगाववाद और प्रांतीयता को हवा देता है। 1935 का भारत शासन एक्ट 1919 के संविधान सिद्धांत का अनुसरण करता है जो विकेंद्रीकरण का सिद्धांत है न कि फेडरेशन का। इसी एक्ट के अनुसार बर्मा को भारत से अलग किया गया और सिंध और उड़ीसा दो नए प्रांत बने। बर्मा हमारा नहीं रहा सिंध अब पाकिस्तान में है।
लेबर पार्टी की जीत, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अंग्रेजी अर्थव्यवस्था का भंगार बन जाना और भारतीय सेना के संभावित विद्रोह के मद्देनजर 22 मार्च 1947 को माउंटबैटन दंपति भारत आए। 3 जून 1947 को माउंटबैटन योजना संबंधित ड्राफ्ट का बयान जारी किया गया।
बँटवारे में संसार की सबसे उपजाऊ ज़मीन , पंजाब के पंचनद , संसार का सबसे सुंदर सबसे बड़ा गंगा का डेल्टा , संसार की दूसरी सबसे ऊँची चोटी के टू , प्राचीनतम सिन्धु घाटी सभ्यता के अवशेष, गिलगिट बाल्टिस्टान की स्विट्ज़रलैंड को मात करने वाली ख़ूबसूरती , एशिया का पेरिस कहा जाने वाला लाहौर , पर्यटन योग्य अनेक प्राचीन और प्राकृतिक पर्यटन स्थल और अपनी आबादी के मुक़ाबले ज़रूरत से कहीं अधिक भूखंड पाकिस्तान के हिस्से में आया !
यहाँ जनसंख्या के हिसाब से अतिरिक्त भूमि, अतिरिक्त संसाधन, अतिरिक्त सेना, अतिरिक्त रसद और पचपन करोड़ रूपए पाक को मिले।
यह दुनिया का सबसे क्रूर, नृशंस, घटिया, बेईमान और बेशर्म बंटवारा था।
इस बंटवारे में 10 लाख से अधिक लोग मारे गए एवं 1.5 करोड़ से ज्यादा लोग बेघर हो गए।।
♦अखंड भारत क्यों आवश्यक???
महर्षि अरविंद ने कहा था विभाजन बना रहता है तो भारत गंभीर रूप से अशक्त हो सकता है सदा ही गृह क्लेश की आशंका रह सकती है जिस प्रकार से जैसे भी हो विभाजन समाप्त होना चहिए, एकता आवश्यक है और प्राप्त की जानी चाहिए क्योंकि भारत की भावी महानता इसी में छुपी हुई है।
आज भारत और पाकिस्तान दोनों दुखी हैं न भारत में चैन है ना पाकिस्तान में शांति जिस धर्म के आधार पर पाकिस्तान बना था उसी में से टूट कर 1971 में बांग्लादेश बन गया जो बजट विकास पर खर्च होना चहिए वह युद्ध सामग्री खरीदने में खर्च हो रहा है ।
प्राकृतिक रूप से बना पाकिस्तान आज एक बार टूटक कगार पर है सिंध ,बलोच ,पख़्तून आज अपने आप को पाकिस्तान में उपेक्षित महसूस कर हैं । विभाजन के समय भारत छोड़कर गए मुसलमानो को पाकिस्तान में मुहाजिर कहा जाता है और उन्हें दोयम दर्जे का नागरिक समझा जाता है । जिस आतंकवाद को पाकिस्तान में खाद पानी मिला वही आज उसके लिए भस्मासुर बन गया है तानाशाही से पाकिस्तान की जनता त्रस्त होकर ऊब चुकी है पाकिस्ता में ना इस्लाम का राज्य रहा ना जनता का वहां हावी है तो तानाशाही और वहां की क्रूर सेना एवं गुप्तचर सस्था आई एस आई जिनका पाकिस्तान की आवाम के हितों से कोई लेना-देना नहीं है।
पाकिस्तान की जनता भी शांति और समृद्धि चाहती है और शांति सिर्फ भारतक साथ मिलकर ही संभव है बहुत पहले मुहाजिर कौमी मूवमेंट के अध्यक्ष अल्ताफ हुसैन ने लंदन में एक कार्यक्रम में कहा था कि विभाजन एक बड़ी ऐतिहासिक गलती है अगर गलती हुई है तो इसे सुधारा भी जा सकता है और सुधार का एक मात्र रास्ता है अखंड भारत की पुनर्स्थापना।
♦अखंड भारत कैसे???
सामान्यतः जब अखंड भारत की बात की जाती है तो लोगों को लगता है कि भारत,पाकिस्तान को खत्म करना चाहता है या जो लोग अखंड भारत की बात करते हैं उनकी सोच विस्तारवादी है जबकि वास्तविकता यह नहीं है , हमारी राष्ट्र की अवधारणा राजनीतिक कम सांस्कृतिक ज्यादा है । भारत में कुछ एक चक्रवर्ती सम्राट को छोड़ दिया जाए तो संपूर्ण देश में राज्य अलग-अलग रहे पर राष्ट्र एक रहा। तात्पर्य यह है की अखंड भारत की कल्पना राजनीतिक ना होकर सांस्कृतिक है क्योंकि जबरन किसी को बांधकर नहीं रखा जा सकता जब तक जनता का मानस न हो राजनैतिक व्यवस्था ज्यादा समय तक नहीं चल सकती।
कुछ लोगों का मत है कि विभाजन एक स्थापित सत्य है पर वह उनकी भ्रांति से ज्यादा कुछ नहीं । जब दोनों देशों की जनता चाहेगी विभाजन समाप्त होकर रहेगा विभाजन को स्थापित सत्य मानने वालों को यह नहीं भूलना चाहिए की वर्षों पूर्व जर्मनी का भी विभाजन हुआ था परंतु बाद में विभाजन समाप्त होकर जर्मनी का एकीकरणहुआ।
जो लोग भारत के विभाजन की मांग को विलक्षण मूर्खता कहकर खिल्ली उड़ाते थे उनके ही सामने भारत का विभाजन हुआ , शक्तिशाली रूस कई टुकड़ों में बंटकर अनेक छोटे-छोटे राष्ट्र बन गए अर्थात विभाजन स्थापित नही परिवर्तनीय सत्य है। पर एकता सैन्य शक्ति के माध्यम से ना हो सांस्कृतिक रूप से होगी तो स्थाई होगी।
दक्षिण एशिया जिसे हम प्राचीन अखंड भारत भी कह सकते हैं के देशों में आपसी सहयोग से शांति और प्रगति हासिल करने के उद्देश्य से 1985 में बनाया गया दक्षेश संगठन भी आपसी समन्वय और प्रगति का एक आधार हो सकता है।
जिस प्रकार यूरोप के 20 देशों ने अपनी एक मुद्रा यूरो बनाई है क्या उसी प्रकार से दक्षेस के देश भी इस दिशा में आगे बढ़ सकते हैं।
यह सब संभव हो सकता है लेकिन उससे पहले पाकिस्तान को सेना और आई इस आई व कट्टर पंथियों के कब्जे से मुक्त होना होगा जो फिलहाल दूर की कौड़ी है।
हम चाहते हैं जो बिछड़ गए हैं वह फिर से मिले रांची से कराची मिले वैष्णो देवी का भक्त शारदा मां के भी दर्शन कर सके, हर मंदिर साहब जाने वाला पंजा साहिब भी जा सके तो उसी धार्मिक भाव से पाकिस्तान के लोग भी ख्वाजा शरीफ़ आ सकें ।
2047 में भारत और पाकिस्तान दोनों ही अपने स्वतंत्रता की सौ वीं वर्ष गांठ मनायेंगे भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने वर्तमान काल से 2047 तक के समय को अमृत काल कहा है यह अमृत काल भारत की जनता के पुरुषार्थ से भारत को वैश्विक नेतृत्व प्रदान करेगा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में भारत आज विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थ व्यवस्था बन चुका है और निश्चित ही 2047 तक भारत विश्व की पहले क्रमांक की अर्थवस्था बनेगा, आत्मनिर्भर भारत समृद्ध भारत समर्थ भारत।
क्या पाकिस्तान भी इस सकारात्मक सोच के साथ भारत का विरोध और नफरत छोड़कर भारत का अनुसरण नहीं कर सकता ??
देश एवं धर्म बदलने से ना पूर्वज बदल सकते हैं ना इतिहास आवश्यकता है आपसी विश्वास एवं सौहार्द का वातावरण बनाने की एवं दोनों देशों की युवा पीढ़ी के मन में अखण्ड भारत के स्वप्न को जगाने की मुझे पूरा विश्वास है कि अखंड भारत का यह सपना बंद आंखों से देखा हुआ स्वप्न नहीं खुली आंखों से लिया हुआ संकल्प बनकर साकार होगा।
स्वतंत्रता प्राप्ति पर श्री विनायक दामोदर सावरकर ने जो प्रतिक्रिया दी थी वह आज भी प्रासंगिक है उन्होंने कहा था स्वतंत्रता प्राप्ति की मुझे खुशी है पर यह खंडित है इसका मुझे दुख है उन्होंने कहा की " किसी देश की सीमाएं नदी,
पहाड़ों या संधि पत्रों से निश्चित नहीं होती हैं यह तो उस देश के युवाओं के पौरूष एवं कर्तृत्व से निर्धारित होती हैं जिस दिन भारत की तरुनाई अपना कर्तृत्व दिखायेगी उस दिन भारत की सीमाएं काबुल और कंधार को लांघकर दूर निकल जाएंगी।"
सुरेंद्र शर्मा
प्रदेश कार्य समिति सदस्य
भारतीय जनता पार्टी मध्य प्रदेश
जिला प्रभारी राजगढ़
पूर्व प्रदेश संगठन मंत्री अभाविप