एक ब्राह्मण जब बागी हो जाता है तो वो चाणक्य भी बन सकता है और लुक्का डाकू भी। लोकमन दीक्षित अंग्रेजों और जमींदोरों के जुल्म के खिलाफ डाकू मानसिंह के गिरोह में शामिल हो गया था। चंबल में यह डाकुओं की पहली पीढ़ी थी। आजादी से पहले इस डाकू गिरोह ने कई अंग्रेज अफसरों और जमीदारों को लूटा। जब देश को आजादी मिली तो इस गिरोह ने भी खूब जश्न मनाया। उम्मीद थी कि अब न्याय मिलेगा लेकिन आजादी के बाद भी सरकार ने इन बागियों को डाकू ही माना। अत: गिरोह चलता रहा। 1955 ई. में डकैत मान सिंह की मौत के बाद लोकमन दीक्षित उर्फ लुक्का को गैंग का मुखिया बनाया गया। कहा ऐसा जाता है कि जब मान सिंह लगातार बीमार रहने लगे और स्वास्थ्य से कमजोर हो गए, तभी लुक्का को जिम्मेदारी सौंप दी गई थी। लुक्का ने यह जिम्मेदारी उठाई और आतंक का दूसरा पर्याय बन गया। इसके बावजूद वह आत्मसमर्पण को कैसे तैयार हो गया, यह एक बड़ा सवाल है। इसके पीछे का कारण बहुत ही रोचक है। कैसे हुआ हृदय परिवर्तन दरअसल, जब वह चारों तरफ आतंक फैला रहा था, तभी एक दिन उसकी भिड़ंत एक रिक्शे वाले से हो गई। रिक्शे वाले ने उसे टक्कर मार दी। इसके बाद वह उतरक