डॉ. मोहम्मद बुरहानुद्दीन : बोहरा समाज को दी नई पहचान

पद्म श्री सैयदना डॉक्टर मोहम्मद बुरहानुद्दीन.... ऐसी शख्सियत जिसने दाऊदी बोहरा समाज को अमन और तरक्की पसंद, वतन परस्त, स्वावलंबी और व्यापारिक कौम के रूप में नई पहचान दी, पूरे समाज को एकजुट किया, फातेमी दावत का परचम यमन से लेकर अमेरिका तक फहराया, बोहरा समाज को हाईटेक किया, शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में लगातार काम किया, ब्याजमुक्त व्यापार की परिकल्पना को साकार किया, ऐसी शख्सियत जिसे न सिर्फ हिन्दुस्तान बल्कि पूरी दुनिया में महान शिक्षाविद, दूरदृष्टा, शांतिदूत, मानवतावादी आध्यात्मिक धर्मगुरू के रूप में सम्मान मिला। अबुल-काइद जोहर मोहम्मद बुरहानुद्दीन का जन्म इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार 20 रबी उल आखर 333 हिजरी को सूरत में हुआ था। आप दाउदी बोहरा के 52 वें दाई-उल-मुत्लक (दाऊदी बोहरा समुदाय के 52 वें धर्मगुरु) थे। वे इस पद पर सबसे ज्यादा समय तक रहने वाले इकलौते धर्मगुरू थे। आप यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका की यात्रा करने वाले पहले दाई थे। आपने इस्लामिक मूल्यों को तरजीह देते हुए समाज की संस्कृति, परंपरा और विरासत को आगे बढ़ाया। आपकी कोशिश रही कि बोहरा समाज धर्म के प्रति निष्ठावान रहे लेकिन इसमें कटटरपंथ को जगह नहीं है। सैयदना साहब ने समाजजनों को यही फरमान दिया कि जिस देश में रहे उस देश के प्रति वफादार रहें। मालूम हो कि दाउदी बोहरा समुदाय इस्लाम के शिया समुदाय का एक पंथ है। 

डॉक्टर बुरहानुद्दीन साहब सन 1961 में अपने पिता सैयदना ताहेर सैफुददीन की मृत्यु के बाद धर्मगुरु बने थे। डॉक्टर मोहम्मद बुरहानुद्दीन साहब ने दुनिया भर में फैले बोहरा समाज के लोगों को एकजुट करने, उनके सामाजिक और आर्थिक उत्थान के लिए काम किया। मोहम्मद बुरहानुद्दीन साहब को जॉर्डन सरकार की तरफ से सर्वोच्च सम्मान स्टार ऑफ जॉर्डन और मिस्र सरकार की तरफ से ऑर्डर ऑफ द नाइल के खिताब से नवाजा गया था। सामाजिक और शैक्षणिक क्षेत्र में योगदान के लिए उन्हें अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और कराची विश्वविद्यालय ने डॉक्टरेट की मानद उपाधियां दी थीं। दुनिया के सबसे पुराने और प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय अल-अजहर यूनिवर्सिटी ऑफ कैरो, इजिप्ट ने आपको डॉक्टर ऑफ इस्लामिक स्टडीज की उपाधि से नवाजा था। सैययदना साहब को मरणोपरांत सन 2015 में आपको भारत सरकार द्वारा देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म श्री से सम्मानित किया गया। 

अंग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक 6 मार्च 1915 को जन्मे सैयदना साहब ने महज 13 साल की उम्र में पूरा कुरान मजीद कंठस्थ कर लिया था। 19 साल की आयु में 51 वें दाई सैयदना ताहेर सैफुददीन साहब ने आपको अल दाई अल मुतलक का वारिस मुकर्रर कर दिया था। 1941 में मोहम्मद बुरहानुददीन साहब को अल-अलीम-उर-रासिक का खिताब अता किया गया। इसके एक साल बाद उन्हें उमादातुल उलमा अल मुवाहेदीन का खिताब अता किया गया, ये ऐसा खिताब है जो समाज के सबसे अधिक विद्वान इंसान को ही दिया जाता है। यमन में आपकी की गई खिदमत को देखते हुए सैयदना ताहेर सैफुददीन ने मोहम्मद बुरहानुददीन को मंसूर-उल-यमन के एतिहासिक खिताब से नवाजा। हिज होलीनेस सैयदना मोहम्मद बुरहानुददीन ने अरबी में रिसाला, रमदानिया इस्तिफताहो जोबादिल मारिफ लिखा। डॉक्टर सैयदना मोहम्मद बुरहानुद्दीन ने प्राचीन और एतिहासिक स्थानों के संरक्षण और पुर्ननिर्माण में खासा योगदान दिया। इनमें काहिरा की अल अनवर मस्जिद भी शामिल है। इसके अलावा मिस्र की अकमार मस्जिद, लुलुआ मस्जिद और जूयूशी मस्जिद के साथ ही फातिमी काल की कई मस्जिदों के पुनर्निर्माण का काम आपने करवाया।

धर्मगुरू के तौर पर अपने 53 साल के कार्यकाल में डॉक्टर सैयदना मोहम्मद बुरहानुद्दीन ने सामाजिक और शैक्षणिक संस्थाए बनाईं जिनके जरिए शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार की दिशा में कई काम शुरू किए गए। मुंबई के मरीन लाइंस में अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस सैफी अस्पताल आपकी देन है। सैफी बुरहानी अपलिफ्टमेंट ट्रस्ट की नींव भी डॉक्टर सैयदना ने ही डाली थी। आपने अल जमीयतुस सैफिया अरबी अकादमी की सरपस्ती करते हुए समाज के पुरुषों और महिलाओं के लिए दीनी तालीम के साथ साथ आधुनिक शिक्षा को शामिल करते हुए बढ़ावा दिया। उन्होंने ट्रस्ट की स्थापना कर इसके जरिए बोहरा विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति देना भी शुरू किया। करजन हसना स्कीम को प्रोत्साहित करते हुए आपने ब्याजमुक्त कारोबार को बढ़ावा दिया। इस स्कीम के जरिए समाज के युवा बेरोजगारों को रोजगार से जोड़ा जा रहा है।

दाउदी बोहरा सम्प्रदाय इस्लाम धर्म की ही एक शाखा है। इस मजहब के मानने वाले पहले मिस्र और यमन में थे और वहाँ से इसके प्रचारक भारत आए। अमेरिका, अरब अमीरात, पाकिस्तान, मलेशिया, श्रीलंका, सिंगापुर, ब्रिटेन, दक्षिण एशिया, पश्चिम एशिया, पूर्वी अफ्रीका, यूरोप आदि में इस समाज के लोग व्यापार तथा तकनीकी कामों में लगे हैं। आपके मार्गदर्शन में समाज ने उद्योग, व्यापार, वाणिज्य, शिक्षा, पर्यावरण, तकनीकी विकास और वैज्ञानिक क्षेत्र में व्यावहारिक प्रयोग किये। डॉ. सैय्यदना साहब ने अपने तख्तनशीं होने के बाद से लेकर अंतिम समय तक कौम और वतन की बेहतरी के लिए अनेक कार्यों को अंजाम दिया। शिक्षा के क्षेत्र में डॉ. सैय्यदना साहब के प्रयासों का ही प्रतिफल है कि आज बोहरा समाज में शत-प्रतिशत साक्षरता है। सूरत में जामिआ-सैफिया दीनी तालीम का मुख्य केन्द्र है जिसे अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी की भी मान्यता प्राप्त है। लगभग तमाम बड़े शहरों में समाज के अपने स्कूल चल रहे हैं जहाँ से दीनी और दुनियावी तालीम की रौशनी बिखर रही है। कौमी दायरे में पेश दाउदी बोहरा समाज आजाद और सेक्यूलर हिन्द में एक ऐसी तरक्की पसंद कौम है जो दीनी तालीम से लेकर जदीद टेक्निकल, मेडिकल साइंस, इंजीनियरिंग, वकालत आदि क्षेत्र में आगे है। फिलहाल, समाज का मुख्यालय मुंबई में है। सैय्यना डा. मोहम्मद बुरहानुददीन साहब ने अपनी 100 वीं सालगिरह के मुबाकर मौके पर आपके साहबजादे सैयदी आली कदर आकिबुल यमन मुफददल सैफुददीन साहब को अपना जानशीं मुकर्रर कर दिया था। वर्तमान में आप 53 वें दाई उल मुतलक यानि बोहरा समाज के 53 वे धर्मगुरू हैं। 

मोहम्मद बुरहानुद्दीन साहब का मुम्बई में दिल का दौरा पड़ने से 17 जनवरी 2014 को निधन हो गया। आपको रौदत ताहिरा दरगाह, भिन्डी बाजार मुम्बई में दफनाया गया है। बहरहाल, डॉ. सैयदना साहब के बारे में यही कहा जा सकता है कि सैफ वह सैफ कि जिस सैफ का जौहर चमके, कौम वह कौम कि जिस कौम का रहबर चमके !! यानि तलवार वहीं होती, जिसकी धार चमकती हो और समुदाय वही होता है, जिसका रहनुमान चमकता हो। बेहतर सामाजिक व्यवस्था, उच्च शिक्षा, दीनी तालीम, आपसी सदभाव व समन्वय, एक सूत्र में पिरोया हुआ पूरा समाज डॉ. सैय्यदना साहब की नेक हिदायतों, पैगाम, अनुशासन, आर्दशों की ही देन है। समाज के लिये की गई खिदमत से बोहरा समाज का हर शख्स उनका अहसानमंद है और हमेशा रहेगा। आज भले ही सैय्यना डा. मोहम्मद बुरहानुददीन साहब जिस्मानी तौर पर मौजूद न हो लेकिन रूहानी तौर पर वे बोहरा समाज के हर शख्स के दिलों में नक्श रहेंगे।  -मुस्ताअली बोहरा, अधिवक्ता एवं लेखक, भोपाल, मप्र