मध्यप्रदेश में भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री अजीब संकट से जूझते नजर आ रहे हैं। 2005-06 के बाद से पहली बार वे इतने परेशान नजर आ रहे हैं। वे ना ही किसी का ट्रांसफर कर पा रहे हैं और ना ही कोई बड़ी योजना को क्रियान्वित कर पा रहे हैं। यही कारण है कि उन्हें अधिकारियों को समझाने के लिए उस मंच का सहारा लेना पड़ रहा है जिस मंच से पहले सिर्फ विपक्ष पर हमले हुआ करते थे। मुख्यमंत्री जी की हालत इसी से समझी जा सकती है कि उन्हें शराब नीति में बदलाव करके यह बताना पड़ रहा है कि शराब अवैध रूप से बिक रही है इसलिए सस्ती करनी पड़ रही है।
युद्ध में राजा के कमजोर होने पर विपक्षी के जीत की संभावना बढ़ जाती है किन्तु मध्यप्रदेश में मुखिया के कमजोर होने पर भी विपक्षी दल टेस्ट मैच की तरह विरोधी टीम के पारी समाप्ति की घोषणा करने का इंतजार कर रही है। जबकि उन्हें अब और आक्रामक होना चाहिए। कांग्रेस के जिस डेढ़ साल की सरकार में लूट खसोट की बात भाजपा करती है उसी सरकार के अधिकांश तथाकथित लूटेरे अब भाजपा में सरकार का हिस्सा हैं।
कांग्रेस को अब अपनी रणनीति बदलनी होगी। उन्हें "शैडो सरकार" बनानी होगी। जिसका लाभ यह होगा कि भविष्य में कांग्रेस का कोई बड़ा नेता अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनकर दूसरे दल में नहीं जायेगा। साथ ही सरकार की प्रत्येक योजना पर कड़ी नजर भी रहेगी व जनता को भी भविष्य में एक स्थाई सरकार होने का भरोसा रहेगा। जनता अब बदलाव चाहती है लेकिन विकल्प के बिना वो भी मजबूर हैं।