पढ़ाई में थी कमतर, अब किताबों में PHD

INDORE:  कोई नाकाम नहीं होता...
निसदिन उदय होता सूर्य यही संदेश है देता
वक्त गुजरता है अवश्य मगर दूसरे मौके भी है देता
एक इम्तेहान की असफलता नहीं होती उम्रभर की नाकामी
एक असफलता से जीवन का विराम नहीं होता
कोई नाकाम नहीं होता...

असफलता को भुलाकर सफलता के लिए नए सिरे से प्रयास करने की सीख देती ये रचना है शहर की सुपरिचित लेखिका ज्योति जैन की। वो बताती हैं कि स्कूली पढ़ाई में मैं औसत से भी कमतर थी। कई बार सप्लीमेंट्री आती या मार्क्स बहुत कम आते थे। मुझसे करीब 10 साल बड़े भाई यूएस तिवारी (जो बाद में नेत्ररोग विशेषज्ञ बने) मुझे भी डॉक्टर बनाना चाहते थे। वो मुझे पढ़ाया करते थे, मगर उनकी तमाम कोशिशों के बावजूद गणित में मैं हमेशा फिसड्डी बनी रही।

वो मुझे साइंस पढ़ाना चाहते थे, मगर मुझे हमेशा आर्ट्स के विषय ही अच्छे लगते थे। खेतों में घूमना और 'नंदन, पराग, चंपक, चंदामामा और अखंड ज्योति' जैसी किताबें पढ़ना मेरे डेली रूटीन में शामिल था। आखिरकार, मां ने मेरी भावनाओं को समझा और मुझे आर्ट फील्ड में कॅरियर बनाने के लिए प्रोत्साहित किया। तब मुझे एहसास हुआ कि लेखन की समझ मुझे बचपन से थी।

मां मुझे इस हद तक प्रोत्साहित करती थीं कि जब कभी मेरे 50 परसेंट्स मार्क्स भी आ जाते थे तो भी उनकी खुशी की ठिकाना नहीं रहता था। मां के अलावा मुझे श्रीराम ताम्रकर सर ने भी इनकरेज किया। उनकी प्रेरणा से मैंने सही तरीके से लेखन कार्य शुरू किया। कोर्स की किताबों में सिर खपाने के बजाय मुझे खो-खो, हॉर्स राइडिंग, ड्रामा, बैडमिंटन और गाइड कैंप अटैंड करने का शौक था। मां की इजाजत से मैंने अपनी सारी हॉबीज पूरी कीं। आकाशवाणी में भी केजुअल अनाउंसर के रूप में काम किया।

असीमित है जीवन का आकाश
अक्षय कुमार की फिल्म 'पैडमैन' का एक डॉयलाग मुझे बहुत अच्छा लगता है। जिसमें वो कहते हैं कि मैं आईआईटियन नहीं हूं, लेकिन मुझे आईआईटी में पढ़ाया जा रहा है। इस तर्ज में मुझे भी घरवाले कहते हैं कि तुम पढ़ाई में तो फिसड्डी रही, लेकिन अब तुम्हारी किताबों और लेखन पर पीएचडी हो रही है। जी हां, ये सही है कि कोल्हापुर यूनिवर्सिटी में 'ज्योति जैन के समग्र साहित्य में जीवन मूल्य' विषय पर पीएचडी हो रही है। लघुकथा लेखन, कहानी संग्रह, उपन्यास और कविता संग्रह पर मेरी 7 किताबें आ चुकी हैं और इसी साल आलेखों और यात्रा वृत्तांत की दो किताबें और आ रही हैं।

मेरी तीन किताबों का मराठी, बांग्ला और अंग्रेजी भाषा में अनुवाद हो चुका है, जबकि कई अन्य रचनाएं गुजराती और पंजाबी में भी अनुवादित हो चुकी हैं। अपनी जिंदगी के अब तक के अनुभवों के आधार पर मैं पूरे यकीन से कह सकती हूं कि स्कूली पढ़ाई का अपना महत्व है, लेकिन इसी को सब कुछ मान लेने का नजरिया सही नहीं है। जिंदगी का आकाश इन सबके के मुकाबले बहुत विशाल, असीमित और अप्रतिम है।