हुकुमचंद मिल की बेशकीमती जमीन पर शासन का दावा हाईकोर्ट में खारिज

INDORE: हुकुमचंद मिल की बेशकीमती जमीन पर शासन का दावा हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया। कोर्ट ने माना कि जमीन नगर निगम की मिल्कियत की है। उसी ने लीज पर दिया था। वही समय-समय पर इसे लेकर आदेश देता रहा है। मंगलवार को जारी 27 पेज के आदेश में कोर्ट ने माना कि जमीन बेचने को लेकर राज्य शासन गंभीर नहीं है। मजदूरों का पैसा न देना पड़े इसलिए बार-बार अड़ंगा डाला जाता रहा है। जमीन पर शासन का दावा खारिज होने के बाद अब गेंद एक बार फिर ऋण वसूली न्यायाधिकरण (डीआरटी) के पाले में आ गई है। कोर्ट के आदेश से मजदूरों को बड़ी राहत तो नहीं मिलेगी लेकिन जमीन बिकने का रास्ता आसान जरूर हो जाएगा।

मिल की साढ़े 42 एकड़ जमीन पर मालिकाना हक के लिए नगर निगम और राज्य शासन के बीच विवाद चल रहा था। अप्रैल के अंतिम सप्ताह में कोर्ट ने इस मामले में दोनों पक्षों की अंतिम बहस सुनने के बाद आदेश सुरक्षित रख लिया था जो मंगलवार को जारी हुआ। मजदूरों की तरफ से पैरवी कर रहे एडवोकेट धीरेंद्रसिंह पवार और परिसमापक के वकील गिरीश पटवर्धन ने बताया कि जमीन पर राज्य शासन का हक खारिज कर दिया गया है।

कोर्ट ने माना कि जमीन नगर निगम की मिल्कियत की है। निगम ने इसे मिल को लीज पर दिया था। पटवर्धन ने बताया कि 27 पेज के आदेश में कोर्ट ने शासन को फटकारते हुए कहा कि उसने तय समय के बाद दावा पेश किया था। उसका रवैया मजदूरों के हित के विपरीत है। शासन हमेशा कोशिश करता रहा कि मजदूरों को पैसा न देना पड़े। जमीन निगम की थी। वही इसका लीज रेंट वसूल रहा है।

फिर डीआरटी के पाले में जमीन
एडवोकेट पटवर्धन ने बताया कि कोर्ट के आदेश के बाद गेंद एक बार फिर डीआरटी के पाले में आ गई है। डीआरटी जमीन बेचने के लिए निविदा बुला सकेगा। हालांकि दो साल पहले भी जमीन बेचने के प्रयास हुए थे। नीलामी के लिए सात बार निविदाएं बुलवाई गई लेकिन कोई खरीदार सामने नहीं आया। हर बार निविदा जारी होने पर शासन की तरफ से विज्ञापन जारी कर दिया जाता था कि इस जमीन का विवाद कोर्ट में लंबित है। पटवर्धन ने बताया कि अब शासन विज्ञापन जारी नहीं कर सकेगा। उम्मीद है कि इस बार निविदा जारी हुई तो जमीन बिक जाएगी। ऐसा हुआ तो मजदूरों को उनका बकाया भुगतान मिल सकेगा।

शासन ने जारी किए थे 50 करोड़
कोर्ट के आदेश पर राज्य सरकार ने मजदूरों को भुगतान के लिए 50 करोड़ रुपए जारी किए थे। इसे मजदूर यूनियन और परिसमापक के माध्यम से मजदूरों में बांटा भी जा चुका है। जमीन पर शासन का दावा खारिज होने के बाद इस रकम का क्या होगा, यह किसी को नहीं पता। हालांकि कोर्ट याचिका में अब 2 जुलाई को फिर सुनवाई करेगी। इस बार जमीन बेचने की प्रक्रिया और बैंकों के दावे पर बहस हो सकती है।

निगम उठा सकता है आपत्ति
सूत्रों के मुताबिक निगम जमीन डीआरटी के माध्यम से बेचे जाने की कोशिश को लेकर आपत्ति उठा सकता है। कोर्ट ने माना है कि जमीन निगम की मिल्कियत की है। ऐसे में निगम लीज निरस्त कर जमीन पर एक बार फिर अपना हक जता सकता है। निगम इसके पहले भी कह चुका है कि जिस उद्योग के लिए जमीन लीज पर दी थी, वही बंद हो गया। ऐसे में लीज निरस्त की जाए। निगम ने जमीन बेचने पर आपत्ति ली तो मजदूरों का भुगतान एक बार फिर अटक जाएगा।