प्रेरणादायक प्रसंग: मेरी चाह

आज कक्षा में बच्चों को हिन्दी विषय बच्चों को पढ़ा रहा था। बच्चों को बहुत पसंदीदा विषय था हिन्दी; आखिर रहे भी क्यों न! उनके सर यानि मैं; बच्चों को पढ़ाने में अपना सम्पूर्ण दिलोदिमाग लगा देते है। हर एक गतिविधि को पूरे हावभाव से करते थे, कविता को लय के साथ, कहानी को ऐसे पढ़ते थे जैसे सारा दृश्य नजरो के सामने ही चल रहा हो। हर एक बच्चों की पसंद, कमजोरी, अच्छाई उन्हें व्यक्तिगत तौर पर पता है। 

वह सभी बच्चों को सामान रूप से सिखाने के लिए कक्षा में हमेशा समर्पित रहते है। पढ़ाने के समय केवल पढ़ाना और कुछ नहीं। यही थी मेरी स्कूल की दिनचर्या। आज कक्षा के पाठ में परी की कहानी चल रही थी। सभी बच्चों कहानी पढ़ना बहुत पसंद था, कहानी सुनने के लिए बच्चे हमेशा से बड़े उत्सुक रहते थे। कहानी में परी सभी बच्चों की एक-एक इच्छा पूरी करने का वादा किया किया था। परी बच्चों की इच्छा पूरी करती इससे पहले ही स्कूल की घंटी बज जाती है। मैंने सभी बच्चों को इसके आगे की कहानी कल सुनाने को कहा और सभी बच्चों को अपनी मन पसन्द एक इच्छा (मेरी चाह) विषय पर कॉपी में लिखकर लाने के लिए कहा। 

सभी बच्चों में बड़ा उत्साह दिख रहा था। अगले दिन सभी बच्चों ने अपनी एक-एक इच्छा लिख कर लाया, सभी की कॉपी जमा कराकर इसे देखने के लिए घर ले आया। खाना खाकर मैं बच्चों की कॉपी देखने लगा। मेरी पत्नी मेरे पास ही बैठी थी। वह फोन में गेम खेल रही थी। एक बच्ची की कॉपी पढ़ते ही अचानक मेरा मन द्रवित हो गया और मेरी आँखों से एक बूँद आँसू झलक आये।

सरसरी नजर डालते मेरी पत्नी ने पूछा - क्या हुआ? “तुम रो क्यों रहे हो”
मैंने बताया आज मैने कक्षा में बच्चों को “मेरी चाह” विषय पर लिखने दिया था।
मेरी पत्नी ने गेम में आँख गडाए हुए पूछा “इसमें रोने वाली कौन सी बात है?"  
मैंने आँखे पौछते हुए कहा – मैं तुम्हे पढ़ कर सुनाता हूँ, एक बच्ची ने क्या लिखा है –

“मेरे मम्मी-पापा अपने मोबाइल से बहुत प्यार करते है। वो उसकी इतनी परवाह करते है कि मेरी देखभाल करना भूल जाते। जब मेरे पापा शाम को थके-हारे काम से घर लौटते है तो उस समय उनके पास मोबाइल फोन के लिए समय होता है मेरे लिए नहीं। जब मेरे मम्मी-पापा काम में बहुत व्यस्त होते है और उनका मोबाइल बजता है तो वे तुरंत उसका जबाब देते है पर मेरी बातो पर नहीं। वे अपने मोबाइल में गेम खेलते है पर मेरे साथ नहीं। जब वे फ़ोन पर किसी से बातें कर रहे हो तो वे मेरी बात कभी नहीं सुनते चाहे मेरी बात कितनी भी जरुरी हो। इसलिए मेरी चाह है कि मैं मोबाइल फोन बनूं।

यह सब सुनकर मेरी पत्नी के आखों से जैसे झरना फुट पड़ा हो।
रुंधे स्वर में उसने पूछा – इस बच्चे का नाम क्या है ?
मैंने बताया – “यह हमारी अपनी ही बेटी मिश्री ने लिखा है”

यह बात सुन मेरी पत्नी का चेहरा अपराधबोध से झुक गया था और मै जैसे किसी घोर निद्रा से जाग गया था। उसके हाथ में मोबाइल अब किसी कांटे से कम नहीं लग रहा था। मुझे अब अनावश्यक मोबाइल छूने से पहले अपनी अबोध बच्ची का चेहरा सामने नजर आने लगा था। जिस प्यार दुलार की वो हकदार थी उसे वो प्यार हम न देकर हम किसी वेजान वस्तु में लुटा रहे थे।  

हमें सांसारिक वस्तुओं के लिए अपने परिवार को नहीं खोना चाहिए चाहे वह मोबाइल हो या जमीन। मोबाइल फोन हमारे जीवन को एक सुविधा देने के लिए है। हमें गुलाम बनाने के लिए नहीं। अभी देर नहीं हुई है, अपने पारिवारिक जीवन में लौट जाइए। वो समय याद कीजिये जब इंटरनेट और मोबाइल गेम नहीं थे। कुछ समय के लिए अपना फोन एक तरफ रखिये अपने बच्चों, अपनी पत्नी, अपने माता-पिता और दोस्तों से बात कीजिए। अपने बच्चों और समाज की नजर में एक सकारात्मक उदाहरण बने नकारात्मक नहीं।
लेखक: श्याम कुमार कोलारे सामाजिक कार्यकर्ता ,शिक्षा चिन्तक, असर सेंटर, भोपाल म.प्र. मोबाइल न. 9893573770