स्कूल में दो तरह के स्टूडेंट्स हमेशा कहानियां बन जाते हैं। एक जो कुछ नहीं करते एवं लाइफ बर्बाद कर लेते हैं (पेरेंट्स उसकी कहानी सुना कर अपने बच्चों को डराते हैं) और दूसरे वह जो ऐसा कुछ कर जाते हैं कि उनका नाम इतिहास में दर्ज हो जाता है। सोसाइटी के लिए रोल मॉडल बन जाते हैं। जय मीणा की कहानी कुछ ऐसी ही है लेकिन यह कहानी बच्चों को नहीं बल्कि अपने आप को ग्रेट समझने वाले कुछ स्कूल प्रिंसिपल सर पेरेंट्स को सबक सिखाती है।
आइए सबसे पहले जय मीणा की रियल सक्सेस स्टोरी पढ़ते हैं
कहानी मध्यप्रदेश के देवास शहर की है। एडवोकेट रामेश्वर मीणा का बेटा जय मीणा शहर के एक प्रतिष्ठित प्राइवेट स्कूल का एवरेज स्टूडेंट था। उसका मन पढ़ाई में कम दूसरी एक्टिविटीज में ज्यादा था। हालात यह बने कि उसके एक्टिविटीज ने उसकी पढ़ाई पर असर डालना शुरू कर दिया। बच्चों का भाग्य बदलने वाले प्रतिष्ठित प्राइवेट स्कूल के प्रिंसिपल ने जय मीणा को स्टडी करने के बजाए उसे स्कूल से बाहर निकालना उचित समझा। पिता एडवोकेट रामेश्वर मीणा की तो जैसे प्रतिष्ठा ही धूमिल हो गई थी परंतु बेटे के भविष्य का सवाल था। इसलिए प्रिंसिपल की बातों पर भरोसा ना करते हुए पिता ने खुद अपने बेटे को स्टडी किया और एक ऐसे स्कूल में डाला जहां पढ़ाई के अलावा स्पोर्ट्स पर शोकेस किया जाता था।
एडवोकेट रामेश्वर मीणा को सफलता मिली या नहीं
पिता का प्रयोग काम कर गया। स्कूल ने जय मीणा को बेसबॉल में डाला था परंतु जय मीणा ने अपने लिए सॉफ्ट टेनिस चुना। पहले स्कूल लेवल फिर स्टेट और नेशनल होते हुए इंटरनेशनल खेला। 2018 में जय मीणा ने एशियन गेम्स में पार्टिसिपेट किया और इसी में मिले पॉइंट्स के कारण जय मीणा को मध्य प्रदेश सरकार द्वारा 2020 में विक्रम अवार्ड दिया गया। इस अवार्ड के साथ मध्यप्रदेश शासन की तरफ से खेल कोटे में सरकारी नौकरी भी दी जाती है।
MORAL OF THE STORY
यह बात सही है कि हर पिता चाहता है उनके बच्चे रैंक प्राप्त करें लेकिन यह बात भी सही है कि हर बच्चा रैंकर नहीं होता लेकिन हर बच्चे में उसका कुछ स्पेशल जरूर होता है। दूसरी बड़ी बातें रहेगी शहर के सबसे प्रतिष्ठित स्कूल के टीचर्स और प्रिंसिपल भी स्टूडेंट की प्रतिभा पहचानने में गलती कर सकते हैं, इसलिए बेस्ट प्रैक्टिस यह है कि पैरंट्स खुद अपने बच्चे के हुनर को जज करें और उसके बाद बच्चे के लिए एक सही स्कूल का चुनाव करें। जय मीणा तो आपके घर में भी हो सकता है, सफलता एडवोकेट रामेश्वर मीणा के नजरिए को मिली है, जिन्होंने उसे दिन रात कोस-कोस कर फेलियर बनाने के बजाय एक ऐसे स्कूल का चुनाव किया जो उसके लिए सही था।
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