केंद्र सरकार का VB-G RAM G बिल : ग्रामीण श्रमिकों के सौ दिन रोज़गार गारंटी के अधिकार का खात्मा: वासुदेव शर्मा एवं संजय झारिया

भोपाल
/ मनरेगा मेठ श्रमिक संघ मप्र के अध्यक्ष संजय झारिया एवं कामगार क्रांति मंच मप्र के अध्यक्ष वासुदेव शर्मा ने संयुक्त वक्तव्य जारी कर केंद्र सरकार द्वारा लोकसभा में प्रस्तुत विकसित भारत – रोज़गार और आजीविका की गारंटी मिशन (ग्रामीण) विधेयक, 2025 (VB-G RAM G) की कड़े शब्दों में निंदा और विरोध किया हैं। यह विधेयक वस्तुतः महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम, 2005 (मनरेगा) को निरस्त और निष्प्रभावी करने का प्रयास है। देश के करोड़ों ग्रामीण श्रमिकों को सौ दिन का रोजगार उपलब्ध कराने, बेरोज़गारी भत्ता सुनिश्चित करने तथा मनरेगा में व्याप्त भ्रष्टाचार पर प्रभावी रोक लगाने में पूरी तरह विफल रहने के बाद केंद्र सरकार ने यह श्रमिक-विरोधी बिल लाकर यह स्पष्ट कर दिया है कि यदि श्रमिक अपने कानूनी अधिकारों—काम की गारंटी, बेरोज़गारी भत्ता, मजदूरी बढ़ाने और भ्रष्टाचार रोकने के लिए खुद के द्वारा प्रभावी निगरानी, निरीक्षण की मांग करेंगे, तो सरकार कानून को ही समाप्त कर देगी।

मनरेगा श्रमिकों के नेताओं ने कहा कि सरकार श्रमिकों को गुमराह करने के लिए यह दावा कर रही है कि अब सौ की बजाय 125 दिन काम दिया जाएगा, लेकिन विधेयक का अध्ययन करने से स्पष्ट होता है कि यह दावा महज़ एक जुमला है। नए कानून के तहत अब पूरे देश के सभी ग्रामीण श्रमिकों को काम देने की कोई गारंटी नहीं रहेगी। केवल उन्हीं गांवों के श्रमिकों को काम मिलेगा, जिन्हें केंद्र सरकार अधिसूचित करेगी। इसके साथ ही, काम न मिलने की स्थिति में मिलने वाला बेरोज़गारी भत्ता भी समाप्त कर दिया गया है।

यह विधेयक पूरी तरह से गैर-लोकतांत्रिक तरीके से लाया गया है। किसी भी श्रमिक संगठन, देश भर में मनरेगा श्रमिकों के बीच काम करने वाले संगठनों से परामर्श किए बिना प्रस्तुत यह बिल एक अधिकार- आधारित, प्रवर्तनीय कानून को समाप्त कर उसे एक बजट-सीमित, विवेकाधीन योजना में बदल देता है, जिसमें केंद्र सरकार की कोई जवाबदेही नहीं है। इससे श्रमिक अधिकारधारी नागरिक न रहकर केवल लाभार्थी बनकर रह जाएंगे और काम न मिलने की स्थिति में अपने अधिकारों के लिए अदालत में भी नहीं जा सकेंगे।

केंद्र सरकार जिस “विकसित भारत” की बात कर रही है, वह ग्रामीण श्रमिकों से रोजगार की कानूनी गारंटी छीनकर बनाया जाने वाला भारत है। इसलिए कामगार क्रांति मंच एवं मनरेगा मेठ श्रमिक संघ मप्र इस विधेयक को पूरी तरह मजदूर-विरोधी मानते हुए इसकी तत्काल वापसी की मांग करता हैं तथा मनरेगा कानून के प्रावधानों को कड़ाई से लागू करने की मांग करता हैं।

केंद्र सरकार को अत्यधिक विवेकाधीन शक्ति
मनरेगा एक सार्वभौमिक, मांग-आधारित वैधानिक अधिकार स्थापित करता है, जिसके तहत किसी भी ग्रामीण क्षेत्र का कोई भी वयस्क व्यक्ति जो अकुशल शारीरिक श्रम करना चाहता है, काम पाने का हकदार है। इसके विपरीत, VB-G RAM G विधेयक की धारा 5(1) के अनुसार काम केवल उन्हीं ग्रामीण क्षेत्रों में दिया जाएगा जिन्हें केंद्र सरकार अधिसूचित करेगी। यदि कोई क्षेत्र अधिसूचित नहीं होता है, तो वहां के श्रमिकों को काम पाने का कोई अधिकार नहीं रहेगा। इससे रोजगार की गारंटी केंद्र सरकार की कृपा पर निर्भर हो जाएगी।

मांग-आधारित व्यवस्था से आपूर्ति-आधारित प्रणाली की ओर
मनरेगा की मूल शक्ति इसकी मांग-आधारित प्रकृति है, जिसके तहत 15 दिनों के भीतर काम देना अनिवार्य है और ऐसा न होने पर बेरोज़गारी भत्ता देना पड़ता है। VB-G RAM G विधेयक की धाराएं 4(5) और 4(6) केंद्र सरकार को राज्यों के लिए पहले से तय बजट आवंटन निर्धारित करने की शक्ति देती हैं। इससे रोजगार की मात्रा श्रमिकों की मांग पर नहीं, बल्कि केंद्र द्वारा तय बजट पर निर्भर हो जाएगी। यह मनरेगा की मूल अवधारणा को पूरी तरह उलट देता है।

राज्यों पर बढ़ता वित्तीय बोझ
मनरेगा के तहत मजदूरी का 100 प्रतिशत और सामग्री लागत का 75% हिस्सा केंद्र सरकार वहन करती है। लेकिन VB-G RAM G विधेयक में अधिकांश राज्यों के लिए खर्च का अनुपात 60:40 कर दिया गया है। इससे राज्यों पर भारी वित्तीय दबाव पड़ेगा, विशेषकर उन गरीब राज्यों पर जहां ग्रामीण रोजगार की आवश्यकता सबसे अधिक है। इसके चलते राज्य सरकारें काम की मांग दर्ज करने से बचेंगी।

नीचे से ऊपर की योजना से ऊपर से नीचे की व्यवस्था
मनरेगा 73वें संविधान संशोधन की भावना के अनुरूप ग्राम सभाओं को योजना निर्माण का केंद्र बनाता है। इसके विपरीत, VB-G RAM G विधेयक एक केंद्रीकृत “राष्ट्रीय ग्रामीण अवसंरचना स्टैक” के माध्यम से योजनाएं थोपता है, जिससे पंचायती राज संस्थाओं की भूमिका कमजोर होती है।

तकनीकी निगरानी और बहिष्करण
मनरेगा में पहले से लागू डिजिटल उपस्थिति और आधार-आधारित भुगतान प्रणालियों के कारण लाखों श्रमिक काम और मजदूरी से वंचित हुए हैं। इसके बावजूद यह विधेयक बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण, जियो-रेफरेंसिंग और तकनीक-आधारित निगरानी को और कठोर बनाता है, जो शारीरिक श्रम करने वाले श्रमिकों के लिए व्यावहारिक नहीं है।

सालभर के रोजगार से ‘ब्लैकआउट अवधि’ की ओर
मनरेगा के तहत साल के किसी भी समय काम मांगा जा सकता है, लेकिन नए विधेयक में बुवाई और कटाई के मौसम में 60 दिनों तक काम पूरी तरह बंद रखने का प्रावधान है। इससे विशेषकर महिला श्रमिकों को गंभीर नुकसान होगा। जबकि वास्तविकता यह है कि कृषि जोतों के घटते आकार, बढ़ती लागत, मशीनीकरण और तथाकथित वैज्ञानिक खेती के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में पहले ही रोजगार के अवसर घटते जा रहे हैं।

वासुदेव शर्मा ने कहा कि VB-G RAM G विधेयक कोई सुधार नहीं, बल्कि दशकों के श्रमिक संघर्षों से प्राप्त संवैधानिक और लोकतांत्रिक अधिकारों पर सीधा हमला है। यह संविधान की भावना, 73वें संविधान संशोधन और सामाजिक-आर्थिक न्याय की अवधारणा के विरूध है, हमारे संगठन लोकसभा में पेश किये गए इस विधेयक की पूर्ण वापसी की मांग करता हैं। साथ ही, *मनरेगा के सभी प्रावधानों को सख्ती से लागू करने, परिवार के प्रत्येक व्यस्क सदस्य को कम-से-कम 200 दिन की रोजगार गारंटी तथा 500 रुपये प्रतिदिन मजदूरी मनरेगा मेठ के लिए निश्चित मानदेय सुनिश्चित करने की मांग करता हैं।*
भवदीय
वासुदेव शर्मा, अध्यक्ष, कामगार क्रांति मंच मप्र।
संजय झारिया, अध्यक्ष मनरेगा में श्रमिक संघ, मप्र।