भाजपा की खींचतान में कहीं कुर्सी ही ना टूट जाए / MY OPINION by Pravesh singh Bhadouriya

प्रवेश सिंह भदौरिया। कहते हैं कि कांच और रिश्तों में आयी दरार को भरा नहीं जा सकता लेकिन राजनीति में दरार कब किस रिश्ते में आ जाये पता ही नहीं। कभी मजबूत संगठन के भरोसे अनुशासन में रहने वाले कार्यकर्ता आज गुटबाजी में फंसे हुए हैं।मैदानी काम की बजाय वे सिर्फ जन्मदिन के पोस्टर में दिखना चाहते हैं ताकि उनके नेताजी को विश्वास हो जाये कि फलां कार्यकर्ता उसके ही गुट का है।

मार्च में चुनी हुई सरकार को अपदस्थ करते ही लगने लगा था कि नयी सरकार पूर्व की सरकारों से बेहतर व अनुशासित होकर काम करेगी लेकिन जिस तरह से मंत्रीमंडल को लेकर खींचतान मची हुई है और नेतागण शक्ति प्रदर्शन कर रहे हैं उससे स्पष्ट है कि अब ये वो भाजपा नहीं है जिसके लिए कभी संगठन सर्वोपरि रहता था बल्कि ये नयी भाजपा है जहां "सत्ता" ही सब कुछ है। यहां अध्यक्ष और संगठन मंत्री का काम अब संगठनात्मक मजबूती देना नहीं बल्कि अपने करीबियों को मंत्री पद दिलवाना रह गया है।

24 विधानसभाओं में उपचुनाव हैं जहां चुनाव की जिम्मेदारी उन लोगों को भी दी गयी है जिन्होंने पिछले विधानसभा और लोकसभा चुनाव में भाजपा के अधिकृत प्रत्याशी के खिलाफ प्रचार किया था।उन लोगों को वापस पार्टी में शामिल किया जा रहा है जिन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा था और पार्टी को हराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

असल में पूरी लड़ाई मुख्यमंत्री की कुर्सी की है। मध्यप्रदेश में एक गुट शिवराज सिंह जी को मुख्यमंत्री नहीं चाहता है।खैर जो भी हो भाजपा की पूरी खींचतान में कमलनाथ दोबारा सत्ता में आ जाये तो आश्चर्य नहीं होगा वैसे भी मध्यप्रदेश की जनता को अब किसी पर भी भरोसा नहीं रहा है।