राजा-महाराजा की जंग में एक अच्छे सेनापति व उसकी सेना का अंत

जितेंद्र आर,भण्डारी(पत्रकार) | पिछले कुछ महीनों से सत्ता व संघर्ष का मुख्य केंद्र बिंदु बना मध्यप्रदेश अब एक नई दिशा की ओर जा रहा है।बड़ी मुश्किल से महाराजा व सेनापति की मेहनत से सत्ता में आई पार्टी ने सत्ता में आते ही राजा की नीतियों को अपना शुरू कर दिया,राजा ने अपनी कुटनितियों को चलते हुए महाराजा व उसके योद्धाओं को हटाने में कोई  कसर नही छोड़ी। सत्ता कहे या अहंकार तभी तो रण मे जब राजा ने महाराजा को किनारे लगाना शुरू किया और सेनापति को यह एहसास दिला दिया की आल इज वेल। पहले फ्लोर टेस्ट में जब राजा ने विपक्षी के दो मोहरों को अपनी टीम में वोट दिलवाकर यह बताने का प्रयास किया गया की हम सब कुछ कर सकते है। दो मोहरे अपनी और करने के बाद राजा व उसके सेनापति की टीम बड़बोले बोल बोलकर ओर ज्यादा मोहरे अपनी करने का दंभ भरते रहे।उधर विपक्षी महाराष्ट्र की चोट से सबक लेते हुए पूरी व्यवस्था पर पैनी नजर जमाये हुए थे। राजा के चलते महाराजा व उसके योद्धाओं का घुटन विपक्षी के लिये संजीवनी बूटी की तरह था।महाराजा का अपना अलग तेज प्रधान सेवक के लिये बहुत ज्यादा उपयोगी था तभी तो राजा व सेनापति की रणनीति के सामने महाराजा ने अपने योद्धाओं व प्रजा के लिये अपना अंतिम ब्रह्मास्त्र चलने में जरा भी देर नही लगाई।

दिल्ली दरबारियों ने महाराजा को रोकने की बजाए न्याय के मंदिर में जोर लगाया,उन्हें इतनी  ताकत सिर्फ महाराजा को समझाने में लगानी थी जितनी उनके द्वारा न्यायमन्दिर में लगाई ।

*22 योद्धाओं के अपने महाराजा के प्रति निष्ठा व  समर्पण के भाव ही है की आज राजा व उसके सेनापति पूरी धराशायी हो गए है,राजा की गलत नीतियों के चलते एक अच्छे व्यक्तित्व का अंत हुआ,वही एक बार फिर प्रदेश में एक बार फिर महाराजा की ताकत से भगवा दोगुने दम से प्रदेश में लहराएगा व शिव एक बार  फिर राज के लिये आगे आएंगे इसमे कोई संशय नही है वही 22 योद्धाओं को अहम जिम्मेदारी मिलेगी ।