क्या संप्रभु जनता काले रंग के कपड़े नहीं पहन सकती | Hindi Live News

विवेक कुमार पाठक। देश में इस समय गजब का चुनावी ड्रामा देखने में आ रहा है। सभाओं में कौन क्या पहनकर जाएगा क्या पहनकर नहीं ये भी सरकारों की शह पर पुलिस तय कर रही है। ताजा मामला मध्यप्रदेश से ही आया है। यहां मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सभा सुनने पहुंची बेटियों को पुलिसिया मनमानी का सामना करना पड़ा। सीएम जिन बेटियों और युवतियों के मामा का रिस्ता पूरे देश में प्रचारित कर रहे हैं उन्हें पुलिस ने सभा के अंदर प्रदेश से रोक दिया। उनका कसूर। जीहां उनका कसूर ये था कि वे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के उद्गार सुनने आईं थीं और आते समय वे सलवार कुर्ता पर काले या काले प्रिंट का दुपट्टा बदलना भूल गईं थीं। अरे भूलने की इसमें बात कहां से आयी क्या काला कपड़ा पहनना मध्यप्रदेश में कानूनन अपराध हो गया है क्या। क्या इस संबंध में सरकार ने कोई अधिसूचना जारी की है कि काले कपड़े या काले रंग का दुपट्टा किसी तरह की शांति भंग करता है। 

अगर ऐसा हो रहा है तो ये बहुत शर्मनाक है। काले रंग का कुर्ता पहने, काले रंग की चुनरी ओड़े या काले प्रिंट की साड़ी पहने हर युवती हर महिला क्या विरोध की मंशा से ऐसा कर रही है। क्या जो जो लोग काले या काले प्रिंट के कपड़े पहनते हैं क्या वे अब एक्टिविस्ट हो गए हैं। क्या मप्र में जो कोई काले कपड़े पहनेगा वो प्रदेश सरकार के खिलाफ माना जाएगा। क्या काले वस्त्र में हर नागरिक प्रदेश सरकार को अपने खिलाफ प्रदर्शन करने वाला लग रहा है।  अगर सूबा सरकार में काले से इस कदर खफा है तो फिर नागरिकों पर ये पाबंदी क्यों। काला कपड़ा दिखना बंद कराना चाहते हैं तो काला कपड़ा बिकना बंद करा दें। अगर बेचने पर रोक नहीं हो सकती तो पहनने और पहनने वालों पर ये पुलिसिया सख्ती को रोकिए। 

हो सकता है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सभा में कई बेटियां कपड़ों पर काला दुपट्टा इसलिए डाले हुए हों क्योंकि उस पर आज के लिए वही वस्त्र हों। कौन किस रंग का कपड़ा किस दिन पहनेगा ये देश के कारपोरेट कल्चर वाले राजनेता तो तय कर सकते हैं मगर गांव देहात कस्बे और शहर का आम नागरिक नहीं। उसकी वेशभूषा उसकी जेब और खर्च की सीमा से तय होती है। बारिश में सूखते और भीगे कपड़ों में से उसके वस्त्र पहनने को निकलते हैं। वो कपड़े सुबह स्नान करके किसी के विरोध और सभा में प्रदर्शन करने के लिए नहीं पहनता। ये फालतू के शक हैं और इनका निवारण करने वाली पुलिस को अपनी सीमाओं के अंदर रहना चाहिए।
आप अपने सूबे के मुखिया को सुनने जा रहे हैं। आप उनके विचार और योजनाओं को जानने जा रहे हैं।

नागरिकों का आना जाना जब तक लोकतांत्रिक है तब तक उनके मौलिक अधिकारों और स्वतंत्रता का हनन कदापि नहीं होना चाहिए। भारत के संविधान ने आजादी के बाद जो सबसे बड़ा तोहफा दिया है वो हमारे अधिकार ही हैं। उन अधिकारों में शोषण के विरुद्ध अधिकार भी एक बड़ा अधिकार है। हमारे मौलिक अधिकारों में हनन डालना हमारा शोषण ही है। हम क्या खाएंगे, क्या पहनेंगे कहां जाएंगे किसके साथ जाएंगे जब तक ये किसी तरह की शांति भंग का कारण जैसे नहीं लगते तब तक पुलिस को नागरिक निजता में प्रवेश नहीं करना चाहिए। पुलिस शक्तिसंपन्न है तो सरकार की वजह से और सरकार नागरिकों की वजह से है। भारत का संविधान आम जनता में संप्रभुता निहित मानता है तो क्या संप्रभु जनता के अपने अधिकार नहीं है। क्या संप्रभु जनता काले रंग के कपड़े नहीं पहन सकती।
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