तू विश्व की है माता,
ममतामयी-करुणामयी तू
जग की पालनकर्ता,
मोक्ष प्रदायिनी हैं तू माता ,
हैं पापों की हर्ता,
भवबंधन से मुक्त कराकर,
भव की पार कर्ता,
वेदों.....
सम्पूर्ण जग में वन्दन हो तेरा
सदियों से हो पूजन तेरा,
वैतरणी को पार कराना,
परम सुकृत्य तेरा,
अपने दूध से सींचती हैं तू,
जीवन अपनी संतान का ,
प्रेम सुधा बरसाकर माता,
पालन करती है सबका,
वेदों.....
तेरा एक स्पर्श मात्र ही,
होता रोग निवारक,
गौमुत्र की कुछ बूंदे ही,
उत्तम स्वास्थ्य की कारक,
पंचगव्य का आचमन ही
पवित्र करता तन-मन,
दुग्ध,दही,माखन,छाछ ही,
आहार हैं सर्वोत्तम,
प्रातःकाल दर्शन मात्र ही
शुभ दिवस बनाये,
काज सवारे बिगड़े सारे,
बाधा दूर भगाएं,
वेदों.....…
गोधुलि बेला ही सबसे
शुभ घड़ी कहलाती,
गोबर के लीपन से ही
पवित्रता घर में आती,
33 कोटि देवता का
होता तुझमे वास,
घास की कुछ तृण खाकर ,
करती दरिद्रता का नाश,
इक परिक्रमा तेरी, माता,
चारधाम बराबर
गौदान है शुभ कर्मो में,
सौ पुण्य बराबर,
वेदों...
देती सबको तू प्यार माता,
फिर दुःखों को पाती,
दूध पिलाने वाली माता,
क्यों खून से नहाती,
तेरी दर्द भरी आहें भी,
वो निर्दय क्यों न समझते?
करके आहत तुझे माता,
क्यों तेरे टुकड़े करते,
चंद पैसों की लालसा में,
ईमान को भूल जाते,
तूने सींचा सबको,
अपने दूध से,
ये कर्ज भी चुका न पाते,
जीवित रहकर भी देती है ,
मर कर भी तू दे जाती,
पूजन की अधिकारी माता,
क्यों दर्द इतना पाती,
करुणा भरी नेत्रों में आँसू,
तेरे दर्द को दिखाते,
जब निर्दय जन तुझ पर,
तीखे हथियार चलाते,
आओ अब गोपाल हमारे,
गौ माता तुझे पुकारे,
गौ का वर्धन करें हम सब,
जीवन इनका संवारें
जीवन इनका संवारें।
रचनाकार-योगिता आशीष पांडेय (पाठक) झाबुआ (म.प्र.