सरकारी कर्मचारी ही देश के विकास में पलीता लगा रहे हैं - My opinion by dr Pravin Singh Bhadoriya

भारत देश की विडंबना रही है कि इसे पहले अंग्रेजों ने लूटा और आजादी के बाद सरकारी कर्मचारी इसके विकास में पलीता लगा रहे हैं। यही कारण है कि अभी तक भारत देश विकसित देश नहीं बन पाया जबकि उसे विकसित राष्ट्र की जमात में खड़े करने के लिए जिम्मेदार नेताओं, अधिकारियों एवं उनके अधीन कार्यरत कर्मचारियों का अनेक पीढ़ियों लायक विकास हो चुका है। देश में अमीर-गरीब का फासला साल दर साल बढ़ता ही जा रहा है जिसके बीच में कहीं मध्यमवर्ग फंसा हुआ है जो उम्मीद करता है कि वो किसी सरकारी नौकरी में आ जाये जिससे वो भी कुछ हद तक उच्च वर्ग के साथ बैठ सके। 

देश में चपरासी से लेकर बाबू तक अनेक लोगों के घर में छापेमारी में इतनी संपत्ति मिलती है जो विश्वास के योग्य ही नहीं होती है हालांकि छापेमारी की कार्रवाही मछली के उस जाल जैसी होती है जिसमें हमेशा छोटी मछलियां ही आती हैं। इन छोटी मछलियों को पनाह देने वाली बड़ी मछलियां, जिसमें नेता और अधिकारी दोनों शामिल हैं, कभी इस जाल में फंसती ही नहीं हैं। कभी कभार चुनाव या किसी त्रासदी के समय यह पढ़ने/सुनने को मिल जाता है कि फलां प्रदेश पर इतना कर्ज है वहीं दूसरी खबर मिलती है कि फलां नेता या अधिकारी की एक वर्ष में इतनी संपत्ति बढ़ चुकी है। 

हालांकि दोनों आपस में विरोधाभासी प्रतीत होती हैं किंतु सत्य है। इसलिए यह आवश्यक है कि किसी भी नेता, अधिकारी या सरकारी कर्मचारी का जीवन कांच के गिलास की तरह स्पष्ट एवं पारदर्शी हो। अतः उपरोक्त व्यक्तियों के मोबाइल/फोन टेप होने चाहिए, वह कहां जा रहा है, किससे मिल रहा है यह उससे उच्च स्थान पर बैठे व्यक्ति को पता होना चाहिए। इससे कुछ हद तक भ्रष्टाचार पर लगाम तो लग ही सकती है। वर्ना गालिब ने तो कहा ही है कि -
"हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन
दिल को ख़ुश रखने को ग़ालिब ये ख़्याल अच्छा है।"