देश के स्कूलों की स्थिति वैसे ही ठीक नही थी और कोरोना महामारी ने और बदतर कर दी है क्योंकि देश के स्कूल बुनियादी सुविधाओं से तोह जूझ ही रहे थे। लेकिन अब ऑनलाइन शिक्षा के आ जाने से बच्चे पढ़ाई से दूर होते जा रहें है मुख्य कारण है इस डिजिटलीकरण के दौर में बच्चो के पास मोबाइल लेपटॉप व इंटरनेट का ना होना।
अभी हाल ही में एनसीआरटी ने 18188 बच्चों पर सर्वे किया जिसमें पता चला कि 80% बच्चों के पास लेपटॉप नही है और 20% के पास स्मार्ट फ़ोन नही है, और तो और 27% शिक्षक व बच्चे ऑनलाइन शिक्षा लेने के लिए स्मार्ट फोन की कमी से जूझ रहे है, हमारी आधी आबादी के पास अभी भी स्मार्ट फोन नही तो कैसे ऑनलाइन पढ़ाई होगी। और बात यहाँ खत्म नही होती यहाँ एक और दिक्कत सामने आती है वह है इंटरनेट एक जूम या गूगल मीट पर 1 घंटे की क्लास लेने में 1GB देता यूज़ होता है और स्पीड भी 1 से 2 एमबीपीएस की चाहिए होती है वरना आवाज नही आती या वीडियो नही दिखाई देता और एक सिम में 300 का रिचार्ज करें तो 2 GB पर डे डेटा मिलता है जो दो क्लास में ही समाप्त हो जाता है और दूसरी सिम का भी उपयोग करें तो चलो मान ले काम बन जाता लेकिन उसके लिए परिवार पर आर्थिक खर्च बढ़ जाता है।
एक तो फीस भी देनी है और इंटरनेट का डेटा भी डलवाना पड़ रहा है। जिसका खर्च ही 600 रुपये महीने अतिरिक्त खर्च एक बच्चे पे आता है अगर दो है तोह 1200 से 1500 भी आ सकता है तो कैसे एक गरीब परिवार इतना खर्च वहन करेगा।
विश्व बैंक भी अपनी रिपोर्ट में बता चुका है कि भारत मे 26 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करते है जिनकी आय 200 रुपये से कम है मतलब 6000 महीना उसमे से फ़ीस और इंटरनेट कितबों में ही इनकी आय चली जाती होगी तो कैसे वो जीवन यापन करेंगे। इसलिए इनके बच्चे स्कूल छोड़ने पर मजबूर है। वैसे भी ग्रामीण क्षेत्रो में बच्चे स्कूल नही जाते थे। अब तो और हालात खराब हो रही है, और बच्चों का शिक्षा का अधिकार कही गुम सा होता जा रहा है, और जो माता पिता अपने बच्चो को पढ़ाना चाहते है वो अपना सामान बेचकर अपने बच्चों को मोबाइल दिला रहे है अपने सुना होगा एक व्यक्ति ने अपनी गाय बेचकर अपने बच्चे को मोबाइल दिलाया था। तो आप सोच सकते है स्थिति कितनी भयंकर है।✒ विवेक रैकवार सागर मध्यप्रदेश 8120818959