प्राचीनकाल में नारी की दशा काफी चिंताजनक थी, यदि आज हम उस पर विचार करे तो सोचकर काफी दुख होता है। प्राचीनकाल मे सतीप्रथा, बालविवाह, कन्या हत्या, अशिक्षा और पर्दा प्रथा नामक कुरीतियां थी। यदि किसी स्त्री के पति की मृत्यू हो जाती तो उसे जिन्दा जला दिया जाता था लेकिन यदि स्त्री मर जाये तो पति को नही जलाते थे। ये इस तरह की कुरीति विद्यमान थी। कम उम्र मे विवाह, कन्या के जन्म होने पर दुख मनाना और उसकी हत्या कर देना ये सब कुरीतियां विद्यमान थी।
इन सभी के सुधार के लिये 19 वी शताब्दी मे जो नारी के उत्थान के लिये कार्य किये जिनमें 1829 मे सतीप्रथा का अंत राजाराम और बिलियम बेटिक के सहयोग से पूरा हुया और इस प्रथा का अंत हुया। इसके बाद 1856 मे विधवा विवाह को केनिग के समय मान्यता दी गई, 1872 मे अंतर्जातीय विवाह को समर्थन दिया इसके अलावा शिशु हत्या प्रतिबंध और नारी शिक्षा को महत्व दिया गया।
लेकिन आज भी हमारे समाज मे नारी का उतना सम्मान नही होता जितना होना चाहिये। आज भी यदि को स्त्री विधवा हो जाती है तो उसका विवाह नही हो पाता। जबकि इसके विपरीत देखा जाये तो पुरुष को इसकी आज भी आजादी दी गई है। अत: इस तरह की कुरीतियों का अंत होना चाहिये और समाज के सभी वर्ग को उतना ही महत्व देना चाहिए जितना की पुरुष को दिया जाता है। ✒ सतीश कटारे जबलपुर