भारत में फेडरल सिस्टम कमजोर हो रहा है - my opinion

डॉ. प्रवेश सिंह भदौरिया।
आजादी के समय संविधान निर्माताओं के सामने पूरे देश को अंग्रेजों के जाने के बाद एक साथ बनाये रखने व राष्ट्र संप्रभुता को बचाये रखने की चुनौती थी। जिसमें यह फैसला लिया गया कि विविधताओं से भरे इस देश को बचाये रखने के लिए आवश्यक है कि केंद्र और राज्य में सामंजस्य रहे व ऐसे विषय जिसमें राज्य को असीमित शक्ति नहीं दे सकते हैं व जो केंद्र एवं राज्य दोनों के लिए महत्वपूर्ण हैं, को समिति सूची अर्थात् कनकरेंट लिस्ट में रखा गया। जिसमें वन, शिक्षा, ट्रेड यूनियन आदि को रखा गया।

ऐसे विषय जो राज्य के लिए महत्वपूर्ण हैं, के लिए नियम सिर्फ राज्य सरकारें बना सकती हैं,उन्हे स्टेट लिस्ट में रखा गया। जिसमें पब्लिक हेल्थ,कृषि, पुलिस आदि को रखा गया। इसी प्रकार रक्षा,उड्डयन जैसे विषयों को यूनियन लिस्ट में रखा गया। इन सूचियों में प्राप्त विषयों के माध्यम से संविधान ने केंद्र एवं राज्यों को शक्ति प्रदान की है। किंतु कुछ समय से देखा जा रहा है कि केंद्र सरकार बिना राज्यों के सुझाव व सहमति के ऐसे विषयों पर भी कानून बना रही है जो स्टेट लिस्ट में शामिल हैं। इसमें सबसे बड़े विषय कृषि एवं स्वास्थ्य हैं। जिसे संविधान निर्माताओं ने राज्य सूची में रखा था। 

कृषि बिलों पर केंद्र द्वारा कानून बनाना कहीं ना कहीं राज्यों को प्रदत्त अधिकारों पर हमला माना जा सकता है। हालांकि केंद्र विशेष परिस्थितियों में राज्य सूची के विषयों पर कानून बना सकता है किन्तु यह भी समझना आवश्यक है कि भारत में विभिन्न राज्यों की कृषि परिस्थिति भिन्न भिन्न है। जिसे एक केंद्रीय कानून से बनाये रखना संभव नहीं है। केंद्र द्वारा MSP जैसे विषयों पर राज्यों को नियम व कानून बनाने की स्वतंत्रता दी जा सकती थी। वैसे केंद्र सरकार को कोई भी कानून लागू करते समय अध्यादेश का उपयोग कम से कम करना चाहिए। साथ ही कानून बनाते समय पारदर्शिता की उम्मीद की जाना बेमानी नहीं है। 

इसी प्रकार पब्लिक हेल्थ जो कि राज्य का विषय है, में कोरोना काल में देखा जा रहा था कि केंद्र सीधे ही राज्यों के पब्लिक हेल्थ तंत्र में अपने अधिकारियों के माध्यम से हस्तक्षेप कर रहा था। वे ना सिर्फ बता रहे थे कि क्या ट्रीटमेंट प्लान होना चाहिए बल्कि टेस्टिंग, सैंपलिंग में भी हस्तक्षेप अच्छा खासा था। इससे ना केवल फेडरल सिस्टम कमजोर हुआ बल्कि केंद्र की हर बात को मानकर जनता के जनादेश का अपमान भी राज्यों ने किया। 

फेडरल सिस्टम भारत के संविधान की मूल भावना है। इसको कमजोर या खत्म करने के लिए पक्ष-विपक्ष दोनों ही जिम्मेदार हैं। मध्यप्रदेश जैसे बड़े राज्यों में एक नये विपक्ष की आवश्यकता महसूस हो रही है जो शैडो गवर्नमेंट के माध्यम से सरकार के कार्यों की समीक्षा करें। अन्यथा भविष्य में हमारी पीढ़ियां "जनतंत्र" को बस किताबों में ही पढ़ पायेंगी या किताबी कोर्स से भी "जनतंत्र" शब्द हमेशा के लिए हटा लिया जायेगा।