क्या प्रियंका "इंदिरा गांधी जी" जैसी जिद्दपन दिखा पायेंगी | POLITICAL NEWS

NEW DELHI: 15 अगस्त 1947 को दिल्ली से मध्य रात्रि 12 बजे जब भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री ने राष्ट्र को संबोधित किया तब किसे पता था कि "कश्मीर से कन्याकुमारी" तक आजादी के इतने वर्षों बाद भी "नेहरु परिवार" की वही अमिट छाप बरकरार रहेगी और इंदिरा द्वारा "जवाहरलाल नेहरु की कांग्रेस" को तोड़कर नयी कांग्रेस बनाने के बाद भी "नेहरु परिवार" के लिए कांग्रेसी कार्यकर्ताओं के मन में इस परिवार के लिए वही आदरभाव बरकरार रहेगा जो 1947 में था। तो क्या आजाद भारत के कांग्रेसी इतिहास में इंदिरा गांधी ही सबसे मजबूत नेता रहीं?शायद हां और शायद ना भी।

"हां" इसलिए क्योंकि ये इंदिरा की ताकत ही थी जिन्होंने "जवाहर की कांग्रेस" को दो भागों में बांट दिया था।एक जिसको इंदिरा गांधी चलाना चाहती थीं और दूसरी जिसको "कामराज" चला रहे थे।ये वही कामराज थे जिन्होंने जवाहरलाल जी की मृत्यु के बाद पहले शास्त्री जी को प्रधानमंत्री बनाया फिर उनकी मृत्यु के बाद इंदिरा जी को।

"ना" इसलिए क्योंकि राष्ट्र की सबसे मजबूत, ताकतवर महिला होने के बावजूद वो पुत्रमोह और चाटूकारों के मोह से ना निकल पायीं।उन्होंने ना केवल संजय के हर फैसलों पर चुप्पी साध ली फिर चाहे वो मुस्लिमों की पुरानी दिल्ली की बस्तियों को एक रात में उजाड़ना हो या फिर तत्कालीन सूचना प्रसारण मंत्री इंद्र कुमार गुजराल जी का मंत्रालय वापस लेना हो बल्कि बाबा साहब भीम राव अंबेडकर जी द्वारा रचित संविधान की धज्जियां तक उड़ा डाली व देश में पहली बार "राजनीतिक इमरजेंसी" लागू कर दी।ये इंदिरा जी की कमजोरी ही थी कि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अपनी पसंद के जज रखना शुरू कर दिए और हारने के बाद स्वयं की बनायी पार्टी INC (r) को छोड़कर नयी पार्टी बना ली।हालांकि देश अभी भी मोतीलाल नेहरु के परिवार को सम्मान से देख रहा था और अंत में फिर उस परिवार की बिटिया पर भरोसा किया और 1980 के आम चुनाव में सत्ता सौंप दी लेकिन इसका कारण जितना इंदिरा का व्यक्तित्व था उससे कहीं ज्यादा तत्कालीन सत्ताधारी दल के प्रति गुस्सा था।

वैसे इंदिरा गांधी जी का नाम कांग्रेस के इतिहास में एक और अद्भुत घटना के रुप में याद किया जाता है। वो है राष्ट्रपति चुनाव जिसमें कांग्रेस के आधिकारिक उम्मीदवार नीलम संजीवा रेड्डी की जगह इंदिरा ने स्वतंत्र उम्मीदवार वी.वी.गिरी की वकालत की थी।

अब इंदिरा की चेहरे जैसी दिखने वाली उन्हीं के परिवार की सदस्या प्रियंका गांधी वाड्रा को कांग्रेस ने महासचिव बनाकर सक्रिय राजनीति में उतारा है। लेकिन क्या प्रियंका "इंदिरा गांधी जी" जैसी जिद्दपन दिखा पायेंगी?यदि हां तो भले ही वह राष्ट्र के लिए कितना भी नुकसानदायक क्यों ना हो लेकिन कांग्रेस पार्टी के लिए वह संजीवनी का ही काम करेगा।