कोरोना इफेक्ट:ब्लड बैंक में ब्लड का टोटा,जीवन बचाने के लिए करना पड रहा हैं संघर्ष / Shivpuri News

शिवपुरी। कोराना के कारण समाज की तस्वीर बदल गई हैं। कोरोना के कारण समाज की व्यवस्थाओ पर भी असर पडा रहा है। मरीजो को ब्लक के लिए भटकना ना पडे इसलिए ब्लक बैंक की व्यवस्था की थी। लेकिन कोरोना काल में इस बैंक के स्टॉक पर भी ग्रहण लग गया हैं क्यो कि लॉकडाउन और समाजिक दूरी के कारण ब्लड डोनेशन कैंप नही लग सके है।

इस कारण ब्लड बैंक में ब्लउ का टोटा हो गया है। इस कारण जिस मरीज को ब्लड की आवश्यकता होती हैं उसे भटकना पडता हैं और स्वयं डोनर को तलाशना पड रहा हैं,और सबसे अधिक असर थैलेसीमिया बीमारी से जूझ रहे पीडित बच्चों के परिजनों को रक्त चढ़वाने के लिए रक्तदाता को साथ लाना पड़ रहा है ।


25 से अधिक पीडित बच्चों के केस जिले में थैलेसीमिया के हैं , जिन्हें हर 15 दिन में रक्त की आवश्यकता होती है । यदि इन्हे समय पर रक्त न मिले तो इनकी जान भी खतरे में आ सकती है।अब ब्लड बैंक की टीम लॉकडाउन के चलते कैंप न लग पाने की बात कह रही है । जिससे यह परेशानी उत्पन्न हुई । अब जल्द समाजसेवी संस्थाओं से ब्लड बैंक रक्तदान शिविर का आयोजन करा ब्लड कलेक्ट करेगी ।

क्या है थैलेसीमिया बीमारी :
थैलेसीमिया एक ऐसी बीमारी हैं,जिसमें प्रभावित बच्चे के शरीर में खून की कमी होने लगती है । यह माता पिता से आनुवांशिक तौर पर बच्चों तक पहुंचता हैं।सामान्य व्यक्ति के शरीर में लाल रक्त कणिकाओं यानि आरबीसी की उम्र करीब 120 दिनों की होती हैं,लेकिन थैलेसीमिया से पीडित रोगी में लाल रक्त कणिकाओं की उम्र महज 20 दिन रह जाती हैं।

इसका सीधा असर पीडित के हीमोग्लोबिन पर पड़ता है और वह एनीमिक होता चला जाता है । इसलिए 15-20 दिनों के अंतराल में पीडित बच्चों को उनके ब्लड ग्रुप का ब्लड चढ़ाया जाता है । ताकि उनका जीवन बचा रहें। बताया जा रहा हैं कि जिले में करीब 25 बच्चे थैलेसीमिया से पीडित हैं।

जिन्हे हर माह ब्लड बैंक में ब्लड की जरूरत पढ़ती है और यदि वहां ब्लड उपलब्ध नहीं है तो फिर डोनर से ब्लड लेकर उन्हें चढ़ाया जाता है । चूंकि जिले में ब्लड को सेपरेट करने वाली मशीन की व्यवस्था नहीं हैं । इस वजह से यहां होल ब्लड चढ़ाया जाता है । यदि सेपरेटर मशीन की व्यवस्था हो जाए तो यहां फिर पैक शैल ब्लड थैलेसीमिया से पीडित बच्चों को चढ़ाया जा सकेगा । महज ओ निगेटिव और बी निगेटिवब्लड ही उपलब्ध वहभी 2-3 यूनिट : ब्लड बैंक में ए , बी , एबी और ओ पॉजिटिव के साथ ए . बी , एबी और ओ निगेटिव ग्रुप होते हैं।


इनमें से बी पॉजिटिव और ए पॉजिटिव रक्त की आवश्यकता सबसे ज्यादा पढ़ती है,लेकिन जिला चिकित्सालय की ब्लड बैंक में महज ओ निगेटिव ओर बी निगेटिव ग्रुप का रक्त ही संकलित हैं। शेष ग्रुप के ब्लड ग्रुप इसलिए नहीं हैं क्योंकि इस बार लॉकडाउन लगा रहा और समाजसेवी संस्थाएं शिविर का आयोजन नहीं कर सकीं । सिर्फ जेसीआई की टीमों ने ही यह शिविर लगाया । हालात यह है कि इमरजेंसी में भी यदि रक्त की जरूरत किसी मरीज को पड़ी तो उसे डोनर के जरिए ही ब्लड उपलब्ध हो सकेगा ।



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